प्यार हो ही गया

Aishwaryada Mishra

आज उसके मन में उथल पुथल मची थी। आँखों के कोर बार बार भीग जा रहे थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे।

उसे रह-रह कर वो दिन याद आ रहा था, जब उसका ब्याह उससे दोगुने उम्र के पुरुष के साथ उसके माता पिता ने करा दिया था। उस समय महज 18 साल की थी रेणु। वो यह शादी नहीं करना चाहती थी, पर उसके माता पिता के आगे उसकी एक ना चली।

ऐसे भी गरीब घर की लड़कियों की कोई ख्वाब और कोई इच्छा नहीं होती यह बात वह होश संभालते ही समझ गई थी। जब उसकी हमउम्र लड़कियाँ खिलौनों से खेलती, वो अपनी माँ के काम में हाथ बंटाया करती थी। गांव के ही सरकारी स्कूल में जैसे तैसे दसवीं तक पढ़ाई की। शहर भेजने के लिए पिता के पास न तो पैसे थे और ना ही इच्छा, तो उसकी पढ़ाई वही रुक गई।

एक दिन उसके पिता ने अचानक घर आकर कहा कि उसकी शादी उन्होंने शहर के किसी अमीर से कर दी है। बहुत खुश हुई सुनकर जिस गरीबी से उसका अतीत बीता है भविष्य नहीं गुजरेगा, लेकिन तुरंत ही उसके पैरों तले जमीन खिसक गई जब पता चला जिस आदमी से उसका ब्याह तय हुआ है वो 38 साल का है। उसकी दो बेटियां हैं। पहली पत्नी किसी हादसे की वजह से गुज़र चुकी है। खुद से दोगुनी उम्र से भी ज्यादा और  जिसके दो बच्चे पहले से हो, ऐसे पुरुष के साथ रेणु बिल्कुल भी नहीं बंधना चाहती थी। उसने शादी से साफ इंकार कर दिया। उसके माता पिता ने उसकी दौलत दिखाई पर उसे ये सब कुछ नज़र नहीं आ रहा था। उसे इस रिश्ते में कतई बंधने की इच्छा नहीं थी।

“देख.. उसकी सिर्फ दो बेटियां हैं। जल्दी से वहाँ जाकर उसे बेटा दे देना फिर देखना पूरे घर पर तेरा राज होगा। नौकर चाकर दिन रात तेरी ड्यूटी बजायेंगे” माँ अक्सर उसे यही बोलकर समझाती, पर उस अबोध को ये सब दुनियादारी की बातें कहाँ समझ आती।

भारी मन से ही सही ब्याह हो गया उसका। बहुत बड़े घर की बहू बन गई पर पत्नी नहीं बन पाई। दिनभर घर के नौकरों के साथ घर के काम में लगी रहती, पर मजाल है उसके पति ने कभी उसका हालचाल भी पूछा हो। हर रात बिना कुछ बोले कमरे में रखे एक सोफे पर उसे सो जाते रोज़ देखती, पर उससे कुछ बोलने पूछने की हिम्मत कभी नहीं जुटा पाती। घर में एक सास थी जो आये दिन उसे अहसास दिलाती थी कि उसे किस नरक से लाकर सीधे स्वर्ग में बिठा दिया गया है।

“मुझे पता नहीं क्या! तेरे घर में खाने के भी दिक्कत थे। वो तो तू अपनी किस्मत का शुक्र मना जो तुझे इतने बड़े घर की बहू बनने का मौका मिला” उसे देखकर उसकी सास का यह डायलॉग फिक्स हो गया था। कहने को तो बहुत बड़ा घर था पर उसे हमेशा काटने को दौड़ता था। जिस-जिस चीज के लिए बचपन से तरसती आई थी, अब उसे देख कर उसके अंदर विरक्ति का भाव पनप गया था।

अपने पति की दोनों बेटियों से जरूर घुल मिल गई थी। उसे लगता कि अगर वो दोनों नहीं होती तो शायद इस घर में वो एक पल भी नहीं रह पाती। वो चुपचाप हर दर्द को सह कर उस घर में रह रही थी पर एक दिन उस पर बिजली तब गिरी जब पता चला उसका पति तो दिल का मरीज है। वह समझ नहीं पा रही थी फिर उसकी शादी उससे क्यों करायी गयी। ऐसा नहीं था कि उसने अपने पति को दवाईयां खाते नहीं देखा था, पर उसे किसी ने कभी गांव में कहा था शहर वालों के चोचले ही अलग होते हैं। खाने से ज्यादा बिना बात की दवाईयां ही खाते हैं इसलिए उसने दवाइयों को देखकर ज्यादा सोचा ही नहीं था।

“लल्ला बाबू तो ये ब्याह भी नहीं करना चाहते थे पर मालकिन ने तो भूख हड़ताल कर दी थी। वो अपने जीते जी पोते का मुँह देखना चाहती थी पर लल्ला बाबू तो छोटी मालकिन (पहली पत्नी) से इतना प्यार करते थे कि उनके अचानक जाने का गम बर्दाश्त ही नहीं कर पाए। उनकी याद में इतने डूबे रहते कि बीमारी ने उसका हाथ पकड़ लिया। जब से इस बीमारी ने उनको पकड़ा मालकिन ने शादी की रट लगानी शुरू कर दी। लल्ला बाबू तो समझा-समझा कर हार गए पर उनकी जिद्द ऐसी थी कि लल्ला बाबू को ही घुटने टेकने पड़े” घर में काम करने वाली रमिया काकी के मुँह से यह सुनकर उस दिन उसके सब्र का बांध टूट गया। उसने सोच लिया अब जो भी हो जाए, जिस इंसान से उसके माता पिता ने उसे ब्याहा है वह उससे बात करके ही रहेगी।

हर रात की तरह मुँह फेर कर सोफे पर सोने वाले पति से उसने पूछ ही लिया “दिवाकर जी इतनी दवाइयाँ आप किस बात की खाते हैं? “

“तबियत ठीक नहीं रहती मेरी” दिवाकर ने जवाब दे कर चेहरा फिर से घुमा लिया।

“तो फिर मेरी जिंदगी बर्बाद करने के लिए मुझसे ब्याह क्यों रचाया” वो गुस्से से फट पड़ी।

“कोई छुपा कर शादी तो नहीं की है। तुम्हें तो यह बात पहले से पता होगी। जिंदगी बर्बाद होने की इतनी चिंता थी तो शादी से इंकार कर देती” दिवाकर भी गुस्से से बोला।

“किसे बताया था आपने” उसने हैरानी से पूछा।

“तुम्हारे पिता को” दिवाकर के इतना बोलते ही रेणु सन्न रह गई। समझ नहीं आ रहा था क्या उसके पिता के लिए धनी घर में उसका ब्याहना ही सब कुछ था। वो यह सुनकर वही सिर पकड़ कर जमीन पर बैठ गई। दिवाकर को रेणु की हालत देखकर समझ आ गया कि उसके माता पिता ने उससे बहुत कुछ छिपाया है।

“क्या तुम जानती हो तुम्हारे पिता ने इस शादी के बदले मुझसे 5 लाख रुपए लिए हैं?”

यह सुन कर तो उसे लगा ये धरती फट जाती और वो उसमें समा जाती। शराबी पिता से उसने कभी कोई उम्मीद की ही नहीं थी पर उसकी माँ ने भी पैसों से उसका मोल लगा दिया यह सुनते ही फफक फफक रो पड़ी।

“इस घर में तुम्हें किसी चीज की कमी तो नहीं ” दिवाकर उसकी तरफ देखकर बोला।

“अगर कपड़े, गहने ही एक लड़की के लिए सब कुछ होते हैं तो कोई कमी नहीं” रेणु आँसू बहाती हुई बोली।

“देखो रेणु, मैं चाह कर भी संध्या की जगह तुम्हें नहीं दे सकता। माँ ने शादी की जिद्द पकड़ ली थी इसलिए मुझ मजबूरी में यह कदम उठाना पड़ा। ऐसे तुम्हारे पिता ने मुझे बताया था कि तुम पढ़ने में अच्छी थी और आगे पढ़ना चाहती थी। अगर मैं तुम्हारा कहीं दाखिला करा दूँ तो क्या तुम पढ़ोगी”

दिवाकर के इतना बोलते ही रेणु का चेहरा खिल उठा और आँसू पोछते हुए उसने हाँ में सिर हिला दिया।

अपनी माँ के लाख विरोध के बाद भी दिवाकर ने रेणु का दाखिला इंटरमीडिएट में करवा दिया। घर पर ट्यूशन के लिए अच्छे टीचर की भी व्यवस्था कर दी। पढ़ने में तेज रेणु ने सात साल में एमबीए कर दिवाकर की ही कंपनी जॉइन कर ली। रेणु ने भी दिवाकर के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी अपने सिर ले ली। धीरे-धीरे दिवाकर की दवाइयों पर निर्भरता कम हो गई और वह फिर से मुस्कुराने लगा। पोते की रट लगाते हुए एक दिन दिवाकर की माँ ने दुनिया छोड़ दी। सात साल से ज्यादा के साथ के बाद भी दिवाकर और रेणु सिर्फ दुनिया की ही नज़र में पति पत्नी रहे। अब भी दोनों के बीच में दूरियाँ कायम थी पर इस बीच कब रेणु को दिवाकर से प्यार हो गया रेणु को पता तक नहीं चल पाया।

आज जब दिवाकर ने उसके हाथ में तलाक का कागज पकड़ा कर कहा “रेणु अब तो माँ भी नहीं रही, फिर इस अधूरे रिश्ते को बोझ की तरह ढोने से अच्छा है हमारा अलग हो जाना। एक फ्लैट तुम्हारे नाम पर मैंने बुक कर दिया है। कंपनी के कुछ शेयर भी तुम्हारे नाम पर है। तुम्हारी पूरी जिंदगी पड़ी है। अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीना शुरू करो” दिवाकर यह बोल कर तो चला गया पर रेणु के दिल पर अनेक घाव देकर।

रेणु ने आँसू पोछा और तलाक के पेपर पर सिग्नेचर कर दिया, फिर दिवाकर के सामने जाकर उसके मुँह पर तलाक के कागज़ात फेक दी “अब खुश हो जाईये आप। आपको इस बंधन से आज़ाद करती हूँ। बहुत कुछ दिया है आपने मुझे, जो मेरा मेरे माता पिता ने मुझे नहीं दिया। उन्होंने तो पांच लाख लेकर मुझे बेच दिया था पर यह जिंदगी जी रही हूँ वह तो आपकी दी हुई है। आज जो कुछ भी हूँ आपके कारण हूँ। इस तलाक के साथ आपका दिया हुआ फ्लैट, नौकरी, कंपनी का शेयर सब आपको मुबारक हो। आपकी पत्नी तो मैं पहले भी नहीं थी पर इस घर की बहू थी और आगे भी रहूँगी। अपनी बेटियों की माँ थी, वो अब भी रहूँगी और उस रिश्ते को आपके द्वारा लाए गए कोई भी कागज नहीं तोड़ सकते” यह बोल कर रेणु दूसरे कमरे में चली गई।

अंधरे कमरे में बैठी थी रेणु। उसे इस तरह टूटा हुआ देखकर उसकी दोनों बेटियां आई उसे दिलासा देने, फिर पिता को दरवाजे के पास खड़ा देखकर दोनों बाहर निकल गई।

“क्या चाहती हो? ” दिवाकर रेणु का एक हाथ अपने हाथ में लेकर पूछा।

“माता-पिता ने तो बेच दिया था मुझे। जो चीज बिकी हुई हो, उसकी कोई मर्जी नहीं होती” रेणु आँसू बहाती हुई बोली।

“इतने भारी डायलॉग मुझे समझ नहीं आते रेणु” दिवाकर रेणु का चेहरे पर लगे आँसुओं को पोछते हुए बोला।

“तो क्या समझ आते हैं आपको! मेरी फीलिंग्स समझ नहीं आती आपको? माना संध्या दी को आप बहुत प्यार करते थे, तो क्या मेरा प्यार नहीं दिखता! समझ नहीं आता मुझे और क्या करूँ कि आपके दिल में अपने लिए थोड़ी जगह बना सकूँ ” यह बोलकर रेणु दिवाकर के कंधे पर सिर रख फूट-फूट कर रो पड़ी।

“कुछ भी नहीं। तुम्हें अब कुछ कहने और करने की जरूरत नहीं है” यह बोल कर दिवाकर ने भी रेणु को अपनी बाहों में पूरी तरह समेट लिया।

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