अर्चना के. शंकर
“सुनो जी! राजी के घर जाना जरूरी ना होता तो कभी नहीं जाती.जानते हो अब उसके जचगी का वक़्त आ गयो है, ऐसे तुम्हें छोड़ कर जाने मे हमारा कलेजा फटने सा लगता है.. मैं तो रहती हूँ तो सब कुछ देख लेती हूँ लेकिन अब बहू से कहना जो भी चाहिए, संकोच तो बिल्कुल नहीं करना, समझे ना! आमोद तो है ही जी हमारा लायक बेटा! “
कहते हुए आँखों से आँसू टपकने लगे जिसे देख अनिरुद्ध जी हँस पड़े.
” मेरी लड्डू पहले तू खुद को ही सम्भाल ले, मैं रह लूँगा मेरी चिंता ना कर हाँ बस जल्दी से जल्दी लौटने की कोशिश करना!”
कहते हुए अनिरुद्ध जी थोड़े संजीदा हो गए दूर मुंबई मे बेटी की जरूरत थी, नहीं तो मज़ाल क्या कि निर्मला जी पति को छोड़ कहीं एक रात भी रही हों! सबसे कहती ” मेरे बुढऊ को तो भई मैं संभाल सकती हूँ और कौनों के बस की बात नाही! “
कल सुबह निकलना था लेकिन निर्मला जी के आँखों से नींद गायब! बहू स्नेहा स्वभाव से ठीक है लेकिन कब तब. अभी तक मेरी चलती है तो ठीक है पर मेरे जाने के बाद क्या तेजी दिखाए, पता नहीं दुबे जी का उतना ध्यान रखे ना रखें!”
ऐसी ही कितनी सारी उलझनों के बीच सुबह हुई नहा धोकर तैयार हुई तुलसी जी को जल चढ़ा कर गोपाल जी को तैयार कर भोग लगा बैठ गई चाय पीने,..
“स्नेहा यहां आ तो बहू! “
” हाँ माँ! “
कहते हुए स्नेहा भी आँगन मे उतरती सीढ़ियों पर बैठ गई।
” मैं जाऊँ ना सकून से बाबू जी का खयाल रख तो लेगी ना बिटिया? “
“हाँ माँ क्यों नहीं आप चिंता ना करो सब हो जाएगा,!”
बड़े उत्साह से स्नेहा ने कहा तो निर्मला जी ने चैन की एक लंबी साँस ली, चाय तीन चार घूंट में ही सुटक उदरस्त कर, हो गई तैयार..
“सुनो जी बहू से कोई संकोच ना करना जो भी हो खुल कर कहना मैं जल्दी ही आने की कोशिश करुँगी!”
कहते हुए झुक गई पाँव छूने.. स्नेह भरा हाथ सर पर आया तो मन हुआ कह दे राजी से कि….
” मैं ना आ पाऊँगी तेरे बाबू जी को छोड़ कर!”
लेकिन बेटी मातृत्व के चौखट पर खड़ी उनका राह देख रही थी कैसे मना कर दे!
आमोद माँ को लेकर निकल पड़ा स्टेशन इधर अनिरुद्ध जी कमरे में.. कमरे में अनंत शून्य सा सन्नाटा पसरा था जिसने उनके मन को बीध कर रख दिया, खुद पर गुस्सा आने लगा क्यों जाने दिया निर्मला को उसके बिना तो एक पल भी जीना ना हो पाएगा फिर ये पंद्रह दिन!
कैसे तैसे एक दो दिन बीत गया स्नेहा ने कोशिश की उनका ध्यान रखने की अनिरुद्ध बाबु दोपहर में खाना खाते तो रोटी और चावल दोनों ताजा बनता शुरू से निर्मला जी उसे निभाते आई। मजाल क्या कि आज तक ठंडी रोटियाँ दुबे की थाली में परोसी गई हो!
निर्मला जी के जाने के बाद एक दो दिन वैसे ही हुआ तीसरे दिन ठंडी रोटी और ठंडा चावल के साथ खाना परोस स्नेहा निकल गई बाजार, किसी तरह अनिरुद्ध जी एक रोटी को कई निवालों में खाया और बाकी बचा भोजन गाय को डाल, हाथ मुँह धोकर कमरे में गए.।
निर्मला जी की फोटो देख मायूस से खिड़की पर बैठ गंगा के तट को देखने लगे.. कैसे खाने की थाली लगने के बाद कुछ कह दो खाने को तो निर्मला हाथ का कौर रोक देती अपनी कसम देकर, और झटपट वो चीज़ बना थाली में डाल तब इजाज़त देती कि भोजन का गस्सा मुँह में डालने की, और आज बहू ने ठंडी रोटी परोस दी और कुछ कहा भी नहीं!!
कैसे तैसे मन को सम्भाल घूमने निकल गए गंगा तट पर घूम कर आए तो आमोद भी आ गया था.. उसके साथ बैठ कर चाय पी और अपने कमरे में चले गए.. कुछ देर में भोजन का बुलावा आया डायनिंग टेबल पर पहुँचे भूख जोरों की लगी थी थाली आई तो बाहर से मंगाया गया भोजन थाली मे देख मन उचट सा गया..
“बहू ठंडी रोटी!!
“जी बाबू जी आज स्नेहा थक गई थी इसलिए मैंने ही कहा आज बाहर का खाना मंगा लेता हूँ अच्छा है आप टेस्ट तो करिए! “
” नहीं आमोद भूख नहीं है मेरे लिए दूध ले आना कमरे में! “
कहकर थाली को प्रणाम कर उठ गए..
आमोद बाबूजी जाते देख परेशान हो उठा अभी कुछ सोच ही रहा था कि स्नेहा की फुसफुसाहट भरी आवाज़ आई……
” देखा आमोद सब माँ की गलती है, उन्होंने बाबूजी का आदत बिगाड़ा है, अब देखो भाई वो नखरे माँ ही उठा सकती हैं मैं नहीं मैं दूध दे देती हूं प्लीज तुम देकर आओ! “
कहते हुए मुँह बनाकर चली गई रसोई मे स्नेहा अभी आमोद पीछे मुड़ा बाबू जी को देख ठिठक गया क्या कहें समझ नहीं आया..
” कोई बात नहीं आमोद सच है मेरा नखरा तेरी माँ ही उठा सकती है अच्छा मैं कहने को आया था कि खुशखबरी है तू मामा बन गया अभी कमरे में गया तो निर्मला का फोन आया..! “
कहकर पीछे मुड़े की आमोद उनके पीठ से लाग गया बाबू जी मैं मामा बन गया और आप नाना चलिए ना छग्गन के यहां से रबड़ी और इमारती खाकर आए..!”
आमोद जानता था बाबू जी का पेट भरा भी हो तो छग्गन हलवाई का इमरती और रबड़ी नहीं छोड़ते..
“हम्म”
कहकर चलने लगे अनिरुद्ध जी जानते थे कि आमोद माँ बाबू जी को कितना प्यार करने वाला बच्चा है लेकिन जीवन साथी के भावनाओं को भी समझना होता है उसकी भी अपनी मजबूरी है एक तरफ पत्नी तो दूसरे तरफ़ माँ बाप , दोनों पिता पुत्र चल पड़े।
छग्गन की दुकान पर गरम गरम इमरती और दूध देख अनिरुद्ध जी की भूख और बढ़ गई.. दोनों ने खूब खाई छक कर इमरती पेट और आत्मा तृप्त हो गया,
“बाबू जी याद है हम अम्मा के लिए भी लेकर जाते थे ये इमारती और गरम केसर काढ़ा दूध और आप छुपा देते और कहते अरे हम तो तुम्हारे लिए लेना भूल गए तब अम्मा कैसा तहलका मचाती थी और फिर मैं जल्दी से उन्हें ले जाकर दे देता कैसे खिलखिला पड़ती थीं, बाबू जी अम्मा जानती थीं कि आप झू बोल रहे होते थे लेकिन फिर भी वो कैसे खुश होती थी ना! “
दोनों टहलते टहलते गंगा घाट पर बैठ आमोद बाबू जी की गोद मे सर रख लेट गया उन्हीं सीढियों पर।
” आमोद क्या हुआ बच्चा?”
” बाबू जी! मुझे माफ कर दीजिए आज स्नेहा ने जो कुछ कहा मैं उसे समझाऊँगा, लेकिन आज जो हुआ वो अच्छा नहीं हुआ आप के मन को ठेस पहुँची है बाबू जी.. सच ही है माँ जैसा कोई नहीं हो सकता!”
कहते हुए बिलख पड़ा आमोद..
“हट पगले इतनी छोटी सी बात मैंने सोचा क्या हो गया, बेटा बहू ने अभी गृहस्थी की शुरुआत की है अभी तेरी माँ जैसी समझ थोड़ी आ जाएगी, और मैंने तो बुरा नहीं माना उठ जा मेरे शेर तेरे बाबू जी की हड्डियों में अब वो दम नहीं मेरा पैर दुखने लगा!”
कहते हुए अनिरुद्ध जी हँसने लगे आमोद उठ बाबू जी के गले लग गया तभी फोन की घंटी बज़ी..
” देख आमोद इस हिटलर को हम कितने जोरदार तरीके से याद कर रहें हैं कि उसका फोन भी आ गया..!! “
” हैलो.. पाँव पड़े जी कैसे हैं? “
” खुश रहो जैसे छोड़ गई थी उससे भी अच्छे तुम अपनी कहो!”
” सुनो जी बहू ध्यान तो रखती है ना तोहार? और खाने के वखत रोटी गर्म बनाकर देती है ना? जाने क्यों मन मे खयाल आया.. वो पहले भी कहती थी ना कि माँ रोटी पहले ही बनाकर रख दें का..? इसलिए ये खयाल आया थोड़ी आलसी है बाकी आप जो कहो सब करेगी।”
” अरे हाँ भाई रोटी दाल सब्जी चावल सब गरम गरम मिलता है और इस समय तो हम बाबू के साथ घाट बैठे हैं, तुम्हारी कमी तो है लेकिन हमारा बेटा जो है तुम चिंता ना करो, अच्छा बताओ हमारी बिटिया और नाती कैसे हैं?”
“सब ठीक हैं जी सोचती हूँ आते वखत उन्हें साथ ले आऊँ!”
“हाँ अम्मा जल्दी ले आओ हमारे भांजे को तब सब मिलकर ऐसे ही गंगा घाट पर बैठ मस्ती करेंगे और अम्मा छग्गन के इमारती और केसर दूध उसी की पार्टी होगी! “
हाँ बिटवा जल्दी ही.. बस तुम दोनों बाबूजी का ध्यान रखना.. है ना! कहकर सुबक उठी निर्मला जी फिर फोन कट गया।
आमोद बाबू जी के चरणों में गिर पड़ा बाबू जी आज आपने मुझे माँ के नजरों मे गिरने से बचा लिया।
एक पिता जीते जी अपने बेटे की गिरने देगा क्या बाबू आ मेरे सीने से लाग जा मेरी सारी क्षुधा को शांत कर दिया अब तो ठंडी छोड़ बासी रोटियाँ भी मीठी लगेंगी!
कहते हुए बेटे को सीने से लगा लिया अनिरुद्ध जी ने।
अच्छा चलो थोड़ी इमरती बहू के लिए ले ले उसके साथ भी वही खेल खेले जो तेरी अम्मा के साथ खेलते थे कहते हुए ठहाका मार हँस पड़े अनिरुद्ध जी।
पीते ने बेटे की पीठ पर हाथ रखी दोनों चल पड़े उनकी लंबी परछाई विशालकाय सीढ़ियों पर धीरे धीरे छोटी होती गई!!
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अर्चना के. शंकर (अर्चना पाण्डेय)