मायके में मां की चीजों पर भी क्या पहला हक भाभी का ही होता है?

Swati Bhatnagar Agarwal

“अक्टूबर का महीना! शरद ऋतु का आगमन! त्योहारों का मौसम! साथ ही सर्दी के आगमन का संकेत मिलता है। ट्रंक और बक्सों में पड़े लहंगे, जरीदार साड़ियां, ऊनी कपड़े और न जाने क्या-क्या बाहर निकालते हैं धूप में रखने के लिए।

2 साल पहले ही राशि की मां का एक लंबी बीमारी की वजह से देहांत हो गया था।

राशि की शादी 2 महीने बाद ही थी। राशि के पापा ने स्टोर रूम में रखा सारा सामान बाहर धूप में निकाला। बक्से, अटैचिया खोलकर गर्म कपड़े, मां की रोजमर्रा वाली पहनने की साड़ियां, रजाइयां, ऊनी कपड़े!

राशि भी इन सभी कपङो को धूप में रख रही थी। हर कपड़े के साथ उसकी एक अलग याद जुड़ी थी। राशि की उन सभी सामानो के साथ पूरी दोपहर निकल गई।उसको पता ही नहीं चला ऐसा लगा जैसे फ्लैशबैक में चली गई हो।

राशि और उसके भाई आशीष के बचपन के गर्म कपड़े भी थे। धूप दिखाकर, वापस तह करके समेट रही थी कि अपने पिता की आवाज उसके कानों में आई।

“बेटा! इन कपड़ों में से तुम लोगों के बचपन के कपड़े निकालकर उस बॉक्स में रखना। जब घर में छोटा बच्चा आएगा तो उसके काम आएंगे। रोशनी ने एकदम अचरज से पिता की ओर देखा।

“पर पापा ये  ऊनी और सूती कपड़े तो मेरे हैं।”

“अरे ननद रानी! अब तो आप अपने नए घर में जा रही हो। वहां अपने घर में नए कपड़े खरीदना। इस घर की चीजे इस घर में छोड़ दो।”रोशनी की भाभी नीता ने हंसते हुए कहा।

एक पल के लिए राशि का दिल भर आया। कुछ बोला ही नहीं गया।पता नहीं क्यों?

चुपचाप पिता के कहे अनुसार कपड़े जमा दिए। जब राशि कपड़े समेट कर स्टोर रूम में वापस आई तो वहां सबसे नीचे एक गुलाबी रंग का खूबसूरत सा बड़ा ट्रंक था।और शायद पिता की निगाहों में नहीं आ पाया था।

राशि उसी को तो ढूंढ रही थी। उसे देखते ही  की आंखों में चमक आ गई। उसको खींचकर बाहर निकाला और स्टोर रूम के बाहर लाई।

भाई और भाभी अचरज से उस ट्रंक को देख रहे थे।”अरे यह क्या है?”

“भाभी! यह मा का ट्रंक है। उन्होंने इसमें मेरे लिए बचपन से खूब सारी चीजें सहेज कर रखी है।

कहती थी “तेरी शादी में दूंगी।”राशि ने मुस्कुराते हुए बोला।

“पर इस पर तो ताला लगा है।चाबी कहां है?”

राशि के भाई आशीष ने अपने पिता की तरफ देखते हुए पूछा।

“देखता हू कहां रखी है?”कहते हुए राशि के पिता अपने कमरे में चाबी ढूंढने चले गए




रोशनी बोलते बोलते चुप हो गई।

“कितने जतन से, कितने प्यार से ,मां उसके लिए एक एक चीज संभाल के रखती थी।”

उसे आज भी याद है जब वह अपने परिवार के साथ मदुरई गई थी।

“मां! वह देखो झुमके!  कटोरे वाले! कितने सुंदर है! मुझे भी चाहिए।”

“अरे बेटा! वह सोने के हैं।और महंगे होंगे। तू तो अभी छोटी सी है। पहन भी नहीं पाएंगी।”मा ने प्यार से कहा।

“बड़ी होगी तब दिला दूंगी।”

“मां! अब यहां वापस कहां आना होगा?”

मा नौकरी करती थी। पैसे की कोई समस्या नहीं थी।

मा ने खूबसूरत सोने के टोकरी वाले झुमके खरीदे। लाल रेशमी डब्बे में सोने के चमचमाते खूबसूरत टोकरी वाले झुमके।”

जब भी राशि अपने परिवार के साथ देश के विभिन्न पर्यटक स्थलों में जाती, मां वहां से कुछ ना कुछ जो उस जगह का प्रसिद्ध होता वह चीज राशि के लिए खरीद लेती।

“कभी सुंदर जड़ाऊ हार, कभी हैदराबादी खूबसूरत मोतियों का सेट, कभी कश्मीर की पशमीना शॉल, ऊनी कपड़े, कभी साड़ियां।”

“बनारस गए तो वहां की जरी वाली कीमती बनारसी साड़ियां, राजस्थान की बंधेज और गोटा पट्टी वाली साड़ियां, आसाम की आसाम सिल्क साड़ी, मध्य प्रदेश की चंदेरी सिल्क साड़ियां, पश्चिम बंगाल की कांथा साड़ी, तात साङी, जब तमिलनाडु गए थे तो वहां की कांचीवरम सिल्क साड़ी,आंध्र प्रदेश की नारायणपट साड़ी, उड़ीसा की बोमकाई साड़ी ,कोटा राजस्थान की कोटा डोरिया की साड़ी! “

“कश्मीर की पशमीना शॉल! “

साड़ियों का एक पूरा कलेक्शन मां ने बना दिया था। कहती थी “तुम आज के जमाने की लड़कियां, कहां ऐसी साड़ियां खरीदोगे?”तुम लोगों को तो नाम भी पता नहीं है। तब मां ने हर साड़ी पर एक टैग लगा दिया। उस साड़ी के नाम के साथ, डेट भी लिखी थी कि उस साड़ी को कब और कहां से खरीदा।

राशि यह सब देख कर हंस पड़ी।

“मां! ऐसा लगता है जैसे कोई साड़ी की एग्जिबिशन है।”

और मां मुस्कुरा देती।

“देखना उस समय तू मेरी तारीफ करेगी। “

“अरे मां!  यह क्या है?”राशि ने पूछा।

मा ने लाल मखमल के कपड़े का पैकेट खोला।

चार खूबसूरत जरी वाली बनारसी सिल्क की भारी कीमती साड़ियां थी।

“एक सुर्ख लाल रंग की, जिस पर सुनहरा जरीदार काम था। दूसरी गहरी हरी, तीसरी गहरी नीली और चौथी नारंगी पीली जरीदार बनारसी सिल्क साड़ियां। “

साड़िया देख मां की आंखों में आंसू आ गए।

“बेटा! इन्हे तेरे नाना नानी ने मुझे शादी में दी थी।

“लाल साड़ी मैंने शादी में पहनी थी। यह पीली वाली हल्दी की रस्म में।यह हरी वाली मेहंदी और संगीत में। साड़ियां बहुत महंगी थी उस समय।

“मेरे लिए आज ये सबसे ज्यादा अनमोल और प्यारी हैं।”  “तू इन्हे संभाल के रखना हमेशा।”

“पर क्यों मां?आप संभालना या फिर आशीष की बीवी आएगी तब संभालेगी।”

राशि ने कंधे उचकाते  हुए कहा।

“बेटा! आने वाली बहू शायद इनका मोल ना समझ सके। वैसे भी बहुएं सास की पहनी हुई पुरानी साड़ियां कहां पहनती है?उनके लिए तो सिर्फ पुराने गहने ही कीमती होते हैं।”

यही सच है और इसमें कुछ गलत भी नहीं है।

“ये तेरे लिए ही है।”

मां नौकरी करती थी और अपनी सैलरी से काफी सारा सामान अलग-अलग जगहों से बड़े चाव से खरीद कर

सब सामान वह बड़े जतन से उस गुलाबी रंग के बॉक्स में जमा कर रखती।

पिता को इस बारे में ज्यादा पता नहीं था। ना उन्होंने जानने की कोशिश की। उनके लिए तो यह एक सामान्य सी बात ही थी।






कुछ सालों बाद मां बीमारी की वजह से पैरालाइजड हो गई। बोल भी नहीं पाती थी। माॅ ने इशारे से समझा कर राशि को उस ट्रंक की दूसरी चाबी संभला दी।

एक चाबी राशि के पापा के पास भी थी।

“पता नहीं मा ने मुझे दूसरी चाबी क्यों दी?”

राशि को उस समय समझ में नहीं आया।

अगले साल भाई की शादी हो गई।



तभी पापा आए। राशि अपने ख्यालों से जागी।

पापा ने चाबी ढूंढ  ट्रंक खोला।

भाई और भाभी भी उत्सुकता से ट्रंक के पास खड़े होकर  उसके खुलने का इंतजार कर रहे थे।

जैसे ही ट्रंक खुला। भाई भाभी की आंखो मे आश्चर्य और खुशी थी।

“बेशकीमती सुंदर साड़ियां, गहनो की पोटलिया! “

“डबल बेड की बेड शीट्स, कुशन कवर,सीपी की चूड़ियां, कश्मीरी पशमीना  शॉल!”

क्या कुछ नहीं था उस बड़े से गुलाबी बॉक्स में!”

यूं तो राशि को सब पता था।पर इतने समय बाद मां के प्यार से संजोए उन सामानों को देख वह अपने आंसू नहीं रोक पाई।

अचानक से भाभी ने एक लाल रंग के की छोटी सी मखमल वाली डिबिया उठाई।उसमें से झुमके निकालकर अपने कानों में लगाएं।

और राशि के पापा से बोली “पापा जी ये  झुमके बहुत सुंदर है।क्या मैं इन्हे रख लू?”

राशि ने एकदम से चौक कर देखा।

“अरे ये तो वही टोकरी वाले सुंदर झुमके है।”

“भाभी! ये मेरे को मम्मा ने दिए थे।मेरे लिए रखे हैं।मेरे बचपन के••••

राशि आगे कुछ बोलती इससे पहले ही राशि के पापा ने कहा”बेटा!  भाभी को जो कुछ भी पसंद है उसे रखने दे। आखिर  यह उसका भी घर है, उसका हक है।”




मैं वैसे भी तेरे लिए नए गहने ,कपड़े बनवा ही रहा हूं। तेरे लिए नई साड़ियां खरीदी है।”

फिर बहू नीता से कहा “नीता! बॉक्स को देख लो।तुम्हें जो पसंद हो रख लो। और जो तुम राशि को देना चाहो वह अलग कर लेना।”

और नीता भाभी को ऐसा कह कर पापा बाहर चले गए।



राशि अपनी मुठ्ठिया बांधे ,आंखों में आंसू लिए चुपचाप  बुत बनी बैठी रह गई।

“पापा ने एक बार मे ही मां की हर चीज से पराया कर दिया।”

राशि अपने पापा के पास गई। बाहर बगीचे में थे।

“पापा ये सब चीजें मा ने मेरे लिए सहेज कर रखी थी।  सिर्फ मेरे लिए।”उन पर मेरा हक है।”भाभी का नहीं।”

पापा ने कहा”देख बेटा! नीता इस घर की बहू है। नई नई आई है।और अब तेरी मां के जाने के बाद इस घर की हर चीज पर पहले उसका हक है।”

“ठीक है पापा! मानती हू। इस घर पर पहले उनका हक है।”पर मां की चीजों पर तो पहला हक मेरा ही है।”

राशि ने उदास होते हुए कहा।

“बेटा भाभी नई नई आई है ऐसा तेरा मेरा नहीं करते। मैंने तेरे लिए सब कुछ नया खरीदा है।”

“पापा! आप नहीं समझ रहे हैं। नई चीजों से मतलब नहीं है। इन चीजों में मेरी मां की यादें और खुशबू बसी है।”

और भाभी के लिए अलग से गहने रखे तो हैं मा ने लॉकर में।फिर मेरी चीजों पर भाभी का पहला हक क्यों है?”




“राशि बेटा!ये  गहने इस घर के हैं। तो उन पर पहला हक इस घर की बहू का है। तेरी भाभी इन गहनों को आगे कभी अपनी बहू को देगी।”इस तरह से गहने इसी घर में रहेंगे।”तू तो अपने घर चली जाएगी।”वहां तेरी सास तुझे उस घर की अमानत और गहने देगी।”

अभी से भाभी से लड़ाई करेगी तो आगे रिश्ते बिगड़ेंगे।इस घर में मैं तेरी भाभी को अपनापन देना चाहता हूं।कल को जब तू  इस घर में आएगी और जब मैं नहीं रहूंगा तो भाभी ही तेरे लिए करेगी।कुछ सोच कर के ही मैंने ऐसा कहा है। समझने की कोशिश कर।”

राशि को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ।

“पापा ऐसा सोचते हैं।”अभी से??”

राशि बिना कुछ कहे चुपचाप भरे दिल से अपने कमरे में चली गई।

उसे आज अपनी मां की बात याद आयी और समझ में आई जब मां ने चुपके से उसे उसे उस ट्रंक की एक ओर चाभी”रखने के लिए क्यो दी थी।और कहा था किसी को बताना मत।”

बहुत देर तक राशि ने सोने की कोशिश की।पर रात करीब 2:00 बजे उठी। मां के दी हुई चाबी अलमारी से निकाली।

स्टोर रूम में गई।दरवाजा बंद करके ,टोर्च की रोशनी में बॉक्स खोला।

लाल मखमली डब्बी से टोकरी वाले सोने की झुमके निकालें। मां भी कभी-कभी इन झुमको को पहनती थी। कितने सुंदर लगते थे उन पर।”

पर भरे मन से ,कांपते हाथों से झुमको का डब्बा वापस ट्रंक में रख दिया।

राशि ने लाल रेशमी पैकेट निकाला जिसमें उसकी मां की शादी की समय की चार जरी के साड़ियों रखी हुई थी।

जो कि काफी पुरानी हो चुकी थी।

आज सुबह भाभी की आवाज राशि के कानों में पड़ी थी जब वह फोन पर शायद अपनी किसी सहेली से बात कर रही थी।

“वे साड़ियां बहुत कीमती है पर सासूजी की पहनी हुई है पुरानी है। जरी भी काली पङने लगी है। इन्हें पहन तो सकते नही। इनको मैं दुकान पर बेच दूंगी। एंटीक साड़ियां दुकानदार खरीदते हैं। बाकी चीजें मैं रख लूंगी।”

यह बातें याद आती ही राशि ने मां की साड़ियों का लाल पैकेट को ट्रंक से निकाल लिया। वापस ताला लगाकर अपने कमरे में आ गई।

उसके दिल में एक सुकून था।

आज उसे सोने के उन टोकरी वाले झुमको से ज्यादा मां की पहनी हुई ये 4 साड़ियां बेशकीमती लग रही थी। “

“साड़ियों की खुशबू में मां की खुशबू और स्पर्श था।”अगले दिन राशि की भाभी ने सभी गहने अपने लॉकर में रख दिए। बाकी सारा सामान अपनी अलमारी में। उन्हें शायद उन साड़ियों के पैकेट का ध्यान भी नहीं आया।”शायद उनके लिए उसका कोई मोल ही नहीं था।”



“साड़ियों  का वह लाल रेशमी पैकेट जिसके लिए अनमोल था उसके पास पहुंच चुका था।

“राशि को वैसे पिता ने सब कुछ दिया था।”नए गहने, नई साड़ियां ,नए सामान।”

पर राशि के लिए मां के उन सामानों में मां की खुशबू, उनका स्पर्श ,उनकी यादें सब कुछ था।राशि के लिए चीजें अनमोल थी पर भाभी के लिए वह केवल और केवल सास की चीजे थी।”

“मां के चले जाने के बाद मायका उतना अपना नहीं रह पाता तो मायके की हर चीज थी बेटी की नहीं रह पाती।मायके की हर चीज पर पहला हक भाभी का ही होता है।”राशि इस कड़वी सच्चाई को समझ गई थी। पर उसका दिल इस बात को मानने को तैयार नहीं थी कि मां की चीजों पर भी भाभी का ही पहला हक होता है क्या?”

“मां की वस्तुओं का मोल एक बेटी से ज्यादा शायद कोई नहीं समझ सकता।क्योंकि बेटी के लिए यह अनमोल होती हैं।मां की यादें, मां की खुशबू, मां का स्पर्श ,मां का प्यार छुपा होता है। जो कि शायद मायके में भाभी कभी समझ नहीं सकती।”

राशि ने अपनी मां की तस्वीर के सामने कहा “मां! अगर आप होती और मुझे अपने हाथों से वे सब देती तो मेरे लिए अनमोल होती।”कोई बात नहीं!”

“मुझे कुछ नहीं चाहिए। बस आपका आशीर्वाद और ये साड़ियां ही काफी है।”

राशि का दिल रो रहा था। पर दिल में एक सुकून भी था कि मां की साड़ियां उसके पास सुरक्षित थी।”मां का आशीर्वाद भी उसके पास था।”




दोस्तों यह कहानी एक वास्तविकता के काफी निकट है।  अक्सर ऐसा ही होता है।”मां के चले जाने के बाद मायका सूना हो जाता है। क्योंकि मां से ही तो मायका होता है।”यह सच है कि मायके की हर चीज पर पहला हक भाभी का होता है ,पर मां के चले जाने के बाद मां की चीजों पर भी क्या केवल पहला हक भाभी का ही होता है?”एक बेटी के लिए चीजों से ज्यादा उस घर में उसके बचपन की यादें होती है। शायद सच कहते हैं लोग कि “मां के चले जाने के बाद वह घर वैसा कहां रहता है?”

उम्मीद करती हूं आपको कहानी पसंद आई होगी फिर भी इस बारे में आपके क्या विचार हैं इसका इंतजार रहेगा।”

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