चेतना अग्रवाल
“अब भी वह बहुत याद आता है… कभी-कभी तो बहुत टीस उठती है मन में, जाऊँ और जाकर उसे अपने सीने से लगा लूँ…. लेकिन नहीं कर सकती।” मनीषा अपने आप से ही बात कर रही थी।
आज मनीषा अपनी अलमारी साफ कर रही थी तो उसे अपनी दोनों प्रेग्नेंसी की फाइल्स रखी दिखाई दी। मनीषा फाइल को उलट-पुलट कर देखने लगी।
पहली फाइल बड़ी बेटी के समय की थी, उसकी सोनोग्राफी रिपोर्ट और ब्लड रिपोर्ट… सब देखकर एक बार फिर उन दिनों में पहुँच गई। अपनी प्रेग्नेंसी को बहुत एन्जॉय किया था उसने।
फिर दूसरी फाइल खोली। दूसरी प्रेग्नेंसी में शुरू से ही कॉम्पलिकेशन थी। मनीषा की तबियत बहुत खराब रहती थी। ना वो कुछ खा पाती थी, ना काम कर पाती थी। बी पी बहुत हाई रहता था।
डिलीवरी भी ऑपरेशन से करनी पड़ी थी। बेटा हुआ था, बेटे का चेहरा देखकर मनीषा सारे दुख भूल गई थी। ऑपरेशन के बाद जब एक हफ्ते बाद मनीषा घर आ गई।
थोड़ी देर बाद ही सासू माँ उसके पास बैठीं और बोलीं, “बहू, तुम्हें तो पता ही है तुम्हारी ननद कभी माँ नहीं बन सकती। इसलिए मैं चाहती हूँ तुम ये बच्चा अपनी ननद को गोद दे दो। तुम्हारे पास तो पहले ही एक बच्चा है और आगे भी तुम बच्चा पैदा करने में सक्षम हो। अगर तुम ये बच्चा अपनी ननद को दे दोगी तो उसकी भी सूनी गोद भर जायेगी।”
“लेकिन मम्मी जी, मैं कैसे अपना बच्चा दे सकती हूँ। मैंने इसे नौ महीने अपनी कोख में रखा है। कितनी तकलीफें सही हैं, नहीं मैं अपना बच्चा नहीं दे सकती।” कहते हुए उसकी आँखो में आँसू आ गये। भरी आँखों से उसने देवेश की तरफ देखा। वो भी कुछ बोल नहीं पा रहा था। उसकी भी आँखें नम थीं। शायद बहन का प्यार बच्चे के प्यार पर भारी पड़ रहा था।
मनीषा का दिल चीत्कार कर उठा। “मम्मी जी, दीदी बच्चे अनाथाश्रम से भी तो गोद ले सकती हैं।”
“तुम जानती हो, समधन ने अनाथाश्रम का बच्चा गोद लेने से मना कर दिया है। इसलिए मैं तुम्हारे आगे झोली फैला रही हूँ।”
उस दिन मनीषा बेचैन रही रात को भी वह अपने बेटे को सीने से चिपकाये रही। वो पूरी रात सो ना सकी थी।
देवेश भी पूरी रात उसका हाथ थामे बैठा रहा। दोनों की चुप्पी बहुत कुछ कह रही थी।
अगले दिन मनीषा की ननद आई और मनीषा की सास ने मनीषा की गोद से बच्चा लेकर पूनम को गोद में दे दिया।
मनीषा तड़प कर रह गई। पूनम तो बच्चा पाकर बहुत खुश थी, अपनी उस खुशी में वो अपनी भाभी का दर्द भी भूल गई।
कुछ दिन तो पूनम वहीं रही, क्योंकि बच्चे को माँ के दूध की जरूरत थी। मनीषा बच्चे को दूध पिलाती और फिर वापस बच्चा पूनम की गोद में चला जाता।
कुछ दिनों बाद पूनम बच्चे को लेकर अपने घर चली गई। अभी तक तो बच्चा मनीषा की आँखो के सामने था, लेकिन अब तो उससे दूर चला गया था।
कुछ दिनों बाद पता लगा, पूनम के पति को उसकी कम्पनी की तरफ से कनाड़ा भेजा जा रहा है। यह सुनते ही मनीषा बुरी तरह टूट गई।
अब तो अपने बच्चे को देखने को भी तरस जायेगी वो। लेकिन वो कर भी क्या सकती थी।
पूनम कनाड़ा चली गई और बच्चे को भी ले गई।
मनीषा को जब भी बच्चे की याद आती, वोबहुत रोती।
कुछ दिन सास ने पोते की इच्छा जाहिर की। मनीषा ने साफ मना कर दिया, “आपने क्या मुझे बच्चा पैदा करने की मशीन समझा हुआ है। अब मैं तीसरा बच्चा नहीं करूँगी। जब मैं अपना बच्चा होते हुए भी उसे अपना ना कह सकी तो मैं क्यों तीसरा बच्चा करूँ। क्या पता आप उस बच्चे को भी किसी को गोद दे दो। मेरे लिए मेरी बेटी ही सब कुछ है, वही मेरा सहारा है। आपने तो मेरे मातृत्व का भी सम्मान नहीं रखा।अगर आपको बच्चा दीदी को देना ही था, तो मुझे पहले ही कह देना चाहिए था जिससे मैं अपने मन को तैयार कर लेती। अब मुझे अपने मातृत्व का सम्मान चाहिए। यही मेरी चाहत है। मैं अब तीसरा बच्चा नहीं करूँगी”
इस बार देवेश ने भी मनीषा के फैसले में उसका साथ दिया। सासू माँ मन मसोस कर रह गई।
धीरे-धीरे मनीषा बेटी की परवरिश में रमने लगी थी। लेकिन आज भी जब उसकी याद आती हो तो दिल में टीस सी उठती है।
तभी मनीषा को अपने कंधे पर किसी क् हाथ महसूस हुआ, पलटकर देखा तो देवेश था।
देवेश ने मनीषा को अपने सीने से लगा लिया।
“देवेश, अब भी वह बहुत याद आता है…” रो पड़ी थी मनीषा…
“मनीषा, मुझे माफ कर दो। मैं भी तुम्हारा अपराधी हूँ। लेकिन मेरे इस अपराध का कोई प्रायश्चित भी नहीं है।”
दोनों एक-दूसरे के गले लग कर रो रहे थे। उनके दुख का कोई समाधान नहीं था।
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धन्यवाद
चेतना अग्रवाल
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