सोने की पतली सी चेन

Tinni Shrivastava

करीब चार दिनों से लगातार बारिश हो रही थी और गरिमा का दिल बैठा जा रहा था…आखिर कब थमेगी ये मूसलाधार बारिश! ना जाने क्यों लोग इसे प्यार का मौसम कहते हैं! होता होगा रोमांस का मौसम पर उसके लिए तो बिल्कुल नहीं है। वैसे उसकी एनिवर्सरी इसी महीने पड़ती है उसके लिए तो यकीनन ये प्यार का मौसम हुआ। पर अब तो उसे बारिश के नाम से ही डर लगता है क्योंकि ये अपने साथ ढ़ेर सारी परेशानियां लेकर आ जाता है। ऐसे में एनिवर्सरी मनाने का पूरा फितूर दिलोदिमाग से उतर जाता है। और गृहस्थी के ठोस धरातल पर प्यार मोहब्बत की खुमारी भी धीरे धीरे टूटने लगती है।

गरिमा पति चंदन और पाँच साल के बेटे गुन्नु के साथ ससुराल के पुराने घर में रहती है। हर महीने किराए का टेंशन तो नहीं है परन्तु बारिश की मार सारे सेविंग्स पर पानी फेर देता है। पुराना घर आखिर कितनी वर्षा झेले …घर की छत से चारों तरफ पानी टपकने लगता है। घर के बाहर भी जल जमाव हो जाता है… मतलब कुल मिलाकर अंदर बाहर बस पानी ही पानी।

गरिमा एक प्राइवेट स्कूल में टीचर है और चंदन का अपना बिजनेस है। खाने-पीने की चिंता नहीं है पर अलग से कुछ बड़ा खर्चा करना या कोई खास चीज खरीद पाना बहुत कठिन हो जाता है। इसी कारण पूरे घर की मरम्मत का काम टलते जा रहा है। लेकिन इस चक्कर में हर साल बरसात में अच्छा खासा खर्चा बैठ जाता है छिटपुट खर्च होते-होते।

नौ साल की शादी में गरिमा जोड़-तोड़ कर गृहस्थी चलाना बखूबी सीख गयी है। जब तक मम्मी जी थी, उनसे भी उसने बहुत कुछ सीखा। उनका जाना गरिमा को बहुत अखरता है। उनका खट्टा-मीठा साथ ही उसका संबल था। गुन्नु को सँभालने के अलावा वो गरिमा और चंदन का भी ख्याल रखती थीं। अब उनके जाने के बाद ऐसा लगता है जैसे सिर पर से छत ही चली गई। वो हमेशा कहा करतीं, “तू तो खुद कमाती है,अपने लिए कुछ बचा और बाद में कोई गहना ले लेना। हमारे जैसे परिवारों में औरतें इसी जुगत से जेवर ले पाती हैं,वरना जिम्मेदारियाँ तो कभी खत्म होने वाली नहीं।” मम्मी जी की बात तो सही थी पर गरिमा अपनी छोटी सी तनख्वाह से कभी गुन्नु तो कभी चंदन के लिए कुछ ले आती या घर खर्च में लगा देती और इतने में खुश हो जाती। 

कुछ साल पहले बरसात के दिनों की बात है। बहुत उमस थी। स्कूल की छुट्टी के बाद वो अपनी कूलीग रंजना मैम के साथ घर लौट रही थी। उसके गले में चेन के इर्दगिर्द काला निशान बन गया था। तब रंजना मैम ने टोक दिया…”एक पतली सी सोने की चेन ले लो। ये नकली वाले ऐसे ही दाग छोड़ते हैं पसीना आने पर।” बेचारी गरिमा झेंप कर रह गई। थोड़ी देर में बारिश शुरू हो गई और रही सही कसर भी निकल गई। उस चेन से काला रंग निकलकर बहने लगा। गरिमा आज भी उस दिन को याद कर शर्म से गड़ जाती है। इज्ज्त का फालूदा बन गया था। तभी उसने मम्मी जी की बात पर अमल करके चेन लेने का दृढ़निश्चय कर लिया।

शादी में थोड़े बहुत गहने-जेवर मिले थे परन्तु डेली पहनने वाली पतली सी चेन नहीं थी।खाली गले स्कूल जाना अच्छा नहीं लगता था। आर्टिफिशियल पहना तो ऐसी हालत हो गई। खैर, उस दिन की फजीहत के बाद गरिमा ने पैसे जमाकर चेन खरीदने मन बना लिया।

हालांकि घर खर्च तो जैसे सुरसा की तरह मुँह बाए रहता इसलिए स्थिति जस के तस बनी रही। इसी दौरान मम्मी जी गंभीर रूप से बीमार पड़ गईं। उनकी देखभाल, दवाई, अस्पताल के खर्चे आदि में घर का बजट पूरी तरह गड़बड़ा गया। मम्मी शायद दिल से अपने बेटे बहू की परेशानी और नहीं बढ़ाना चाहती थी और एक दिन शांति से वो चिर निद्रा में सो गईं। गरिमा का रो-रोकर बुरा हाल था। उसकी दोनों बड़ी ननदें परिवार सहित आ गई थी।

“ऐसे कोई छोड़कर जाता है भला ? हमेशा बोलती थी कि मेरी वजह से और तकलीफ बढ़ गई तुमलोगों की, अब भगवान मुझे उठा लें,यहीं प्रार्थना है।” ऐसा कहकर गरिमा बार-बार रोने लगती थी अपनी नंदों को पकड़कर।

मम्मी के पास कुल जमा दो ही तो गहने थे… कान की बाली और दो-दो सोने की चूड़ियां बिल्कुल पतली सी। जोकि समय के साथ घिसकर और भी पतली हो गई थी। सारे क्रिया कर्म के बाद, जाने के पहले चंदन ने बहनों को माँ की निशानी के तौर पर दो दो चूड़ियाँ दे दीं। बहनों को भाई के घर की हालत मालूम थी, नानुकुर भी किया लेकिन चंदन और गरिमा ने उन्हें जबरदस्ती दे ही दिया।

जिंदगी एक बार फिर चलने लगी। चंदन अपने काम में और गरिमा भी स्कूल, घर में व्यस्त हो गई। पिछले कुछ महीने इतने खर्चीले रहे कि नहीं चाहते हुए भी गरिमा को स्कूल की नौकरी करनी ही थी। नन्हा गुन्नु भी बिना दादी के रहना सीख रहा था।गरिमा की सोने की चेन लेने की ख्वाहिश दिल के दिल में ही रह गई। ऐसा नहीं था कि चंदन इन सब बातों से अनभिज्ञ था परन्तु मीडियम क्लास वालों के लिए अपनी हर इच्छा को पूरी कर पाना भला कहाँ संभव है!

शाम में और बरसात होने की चेतावनी जारी की गई थी। इसलिए चंदन भी आज जल्दी आ गया। गरिमा तो जैसे भरी पड़ी थी चंदन को देखते उसने अपने हाथ का टब उसे पकड़ा दिया…..” उधर पानी टपक रहा है, इसे वहाँ रख दो। परेशान हो गई हूँ सबकुछ व्यवस्थित करते हुए। ना जाने कब धूप खिलेगी और इस बरसात से छुटकारा मिलेगा।”

“इस बार पूरे घर की मरम्मत करवा ही देता हूँ। मेरे पास कुछ पैसे हैं तुम्हारे पास भी तो होंगे ही। सही में तंग आ गया हूँ हर साल के इस झंझट से।” चंदन ने झुँझलाते हुए कहा।

बेचारी गरिमा क्या कहती। अपनी सेविंग्स देने को राजी हो गई।

अगले ही दिन से घर में काम शुरू हो गया। कुछ ही दिनों में घर एकदम नये लुक के साथ तैयार था। इन सबमें खर्चा तो आया लेकिन अब यही एकमात्र उपाय था वरना आगे और परेशानी होती। अगले दिन गरिमा और चंदन की शादी की दसवीं एनिवर्सरी थी।

“गरिमा चलो तुम्हें चेन खरीदनी थी न .आज ले लेते हैं। “

“अब पैसे कहाँ बचे ? कोई बात नहीं। फिर कभी ले लूँगी।”

“मेरे पास पैसे हैं न! तुम चलो तो!”

“पर…तुम्हारे पास कैसे आए ?अभी तो इतना सबकुछ खर्च हुआ है।”

तभी बारी बारी से दोनों नंदों का फोन आ गया…..”तुमने चेन खरीदी कि नहीं ?”

गरिमा को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उसकी चेन खरीदने की बात इन दोनों बहनों के पास कैसे पहुँची!और वे भला क्यों तकाज़ा करा रहीं।

“हाँ..हाँ बस निकल ही रहे। हम दोनों की ओर से एक बार फिर से थैंक्स दीदी! गरिमा को अभी कुछ नहीं मालूम। अब सब क्लीयर करता हूँ।”

गरिमा हैरान होकर सबकुछ सुन रही थी।

“दोनों दीदी ने हमारी शादी की दसवीं सालगिरह पर ये कुछ पैसे भेजे हैं और कहा था कि तुम्हारे लिए सोने की चेन और हम बाप बेटे के लिए भी कुछ अच्छा सा खरीद लूँ। ये माँ की उन्हीं चूड़ियों के पैसे हैं। अब समझ में आई बात!” चंदन ने हँसते हुए कहा।

“अब समझी क्यों उन्होंने पहले ना फिर हाँ किया उन चूड़ियों के लिए!” गरिमा की आँखों में खुशी के आँसू आ गए। आज के समय में कौन सी ननद अपनी भाभी के लिए इतना सोचती है। सबके परिवार में बजट का एक ही हाल है। परन्तु अपनी इच्छाओं से परे उन्होंने इस अनोखे तरीके से ही सही अपने भाई भाभी को ऐसी खुशी दी वो कभी नहीं भूलेगी।

गरिमा ने ज्वेलरीशॉप से अपने पसंद की चेन ले ली। और चंदन ने अपने हाथों से उसे पहना दिया। गुन्नु भी मम्मी पापा को यूँ खुश देखकर बहुत खुश हो गया। सोने की पतली सी चेन ने मानो गरिमा को जमाने भर की खुशियाँ दे दी।

गरिमा को आज की बारिश बेहद खूबसूरत लग रही थी। आज बरसों बाद उसे फिर से वर्षा की बूँदों में भीगना था,वो चंदन और गुन्नु का हाथ पकड़कर बाहर खींच लाई……

चक धूम धूम चक धूम धूम

घोड़े जैसी चाल हाथी जैसी दुम

ओ सावन राजा कहाँ से आए तुम!

धन्यवाद…..

आपकी सखी

तिन्नी श्रीवास्तव।

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