भूला बिसरा सा मायका!!

अर्चना के. शंकर

ये रेंगती सड़कें मेरे शहर की! उनके किनारे यथावत खड़े ये गुलमोहर के पेड़! वो भागते बच्चे वो चाय की टपरी! वो खिलखिलाती खिड़की से झाँकती औरतें! छतों पर लहराते और सूखते कपड़े!

गाड़ी में बैठी रीवा अपने शहर को अपलक निहार रही थी बचपन में इन्हीं सड़कों पर भैया का हाथ थामे मस्ती करती स्कूल के लिए जाती गुलमोहर के पेड़ पर लगे फ़ूलों को देख मचल उठती तो भैया लकड़ी के डंडे से उछल उछल उन्हें तोड़ने की कोशिश करते और जब पापा जी रास्ते मे मिल जाते तो हाथों पर अठन्नी धर देती वो अठन्नी जैसे खजाना होता हमारे लिए आह! वो सुहाने दिन थे!

एक गहरी साँस लेते हुए रीवा ने मुस्कुराते हुए सड़क पर आगे देखा पूरे दस साल बाद अपने शहर आना! देखते देखते अतीत के गलियारे मे विचरने लगी शादी के बाद विदाई का दिन याद आ गया विदाई की सारी रस्में निभाई जा रही थी माँ का बुरा हाल था रो रो कर बाबू जी नहीं रहे शायद मेरी विदाई के समय वो पीड़ा भी माँ को दोगुना दर्द दे रही थी विदाई की रस्मों के आपाधापी के बीच मुझे भैया कहीं नहीं दिख रहे थे मैंने सबसे पूछा तो उनकी खोज होने लगी पता चला अपने कमरे में छुप कर रो रहे थे।

आए तो हम दोनों ऐसे रोये जैसे छोटे बच्चे पता नहीं कौन सा दर्द था बाबू जी के ना रहने एक दूसरे से बिछड़ने का बहुत रोये दोनों इतना कि सभी लोग रोने लगे कुछ देर बाद भैया राघव के सामने हाथ जोड़ खड़े हो गए..

राघव ने भैया का हाथ थाम लिया वो पल ऐसा था कि मन हो रहा था राघव के सामने हाथ जोड़ खड़ी हो जाएं और कह दें मुझे छोड़ दे अब इस शादी से मेरा कोई वास्ता नहीं है माँ भाई से बिछुड़न का दर्द था ही ऐसा!

विदाई हुई और मैं ससुराल चली गई कुछ सालों तक हर महीने आती माँ और भैया के साथ एक दो दिन रहकर चली जाती वो खूबसूरत समय था घर आती तो माँ के रसोई से कितने कितनी सारे पकवानो के सुगंध से पूरा घर महक उठता! घर के दामाद के आव भगत के लिए भैया कोई कोर कसर नहीं छोड़ते रात के खाने के बाद गरमा गरम जलेबी और रबड़ी का स्वाद आज भी मुँह में है!

कुछ सालों बाद भैया की शादी हुई भाभी मुग्धा बहुत सुंदर बड़े घर की बेटी को हमारे घर में थोड़ी परेशानी हुई शुरू शुरू में सब अच्छा था लेकिन माँ के गुजरने के बाद बहुत कुछ बदल गया भैया का प्यार दुलार चिंता अब औपचारिकता में बदल गई महीने साल में और साल एक दो साल और फ़िर दस साल में बदल गए हम दोनों भाई बहन को शायद पता नहीं चला।

फोन पर बातेँ हो जाती वो भी औपचारिकता मात्र ही एक दो बार भाई भाभी मेरे घर आयें लेकिन कुछ घंटों के लिए! दोनों जो एक माँ के गर्भ से जन्मे आज कई सालों से मिले नहीं!

पिछले हफ्ते मुझे पता चला भैया बहुत बीमार है मैं बेचैन सी हो गई.. तब राघव ने कहा “रीवा! हमें चलना चाहिए भैया को देखना कहो तो दो दिन बाद चलें!”

राघव के शब्दों ने मुझे जैसे मूर्छा से जगा दिया! क्यों मैंने ही कोशिश नहीं की क्यों रिश्ते को चलाने के लिए मैंने कोशिश नहीं की! मुझे भी तो बिना बुलाएं जाना चाहिए था! क्यों अगर भैया रिश्ता नहीं निभाना चाहते तो उसने भी तो निभाने की ठंडे पड़े रिश्ते में गर्माहट देने की कोशिश नहीं की! “

सोचते हुए आँखों से निर्झर नीर बहने लगे राघव ने रीवा को सम्भाला और बोल पड़े..”तुमने भी तो मन में गाँठ बाँध ली थी ना रीवा तुम्हारी भाभी को तुम नहीं जानती? हो सकता है अनिरुद्ध भैया के पास कोई मजबूरी हो तुमने भी तो जानने की कोशिश नहीं की एक दूरी बना ली! अच्छा अब वो छोड़ों हम तुम्हारे शहर जा रहे हैं पूरे दस सालों बाद तैयारी तो करो।”

रीवा मुस्करा उठी तैयारी करते समय मन में ऐसा उछाह था जैसे ससुराल से पहली बार अपने मायके जा रही थी मन हो रहा था बस एक कदम बढ़ाए और भैया के पास पहुँच जाएं!

उसके बाद ये सफ़र! मायके के लिए मेरा सफ़र!

” रीवा रीवा!! गाड़ी से उतरो तुम्हारा मायका आ गया। “

राघव की आवाज रीवा की तन्द्रा टूटी सामने अपना घर देख भावुक हो उठी कदम उठ ही नहीं रहा था जैसे मनो टन पत्थर बाँध दिए हो किसी ने! आँखों से आँसू अपने आप बहे जा रहा था..

राघव ने हाथ थामा अंदर लेकर गया घर के बड़े आँगन मे अनिरुद्ध आराम कुर्सी पर बैठे था आँखे मूँदी थी चेहरा पीला पड़ा

“आह भैया कितने कमजोर लग रहे हैं!”

कहते हुए उनके पैरों पर गिर गई..

भैया! भैया! कहते हुए एक छोटी बच्ची की तरह रो पड़ी..अनिरुद्ध ने आँखे खोली बहन को देख आश्चर्य से भर उठे जैसे कोई सपना देख रहे हों बहन को इतने सालों बाद अपने सामने अपने घर के आँगन मे देख भावुक हो उठे आँखों मे आँसू लेकर बोल पड़े..

“मेरी गुड़िया! कितनी देर कर दी देख ना तेरे भाई की क्या हालत हो गई गलती मेरी ही थी मैंने तुझे बुलाया ही नहीं माँ के जाने के बाद मैं अपना फ़र्ज़ भूल गया रीवा!”

दोनों गले लग वैसे ही रोये जैसे विदाई के समय रोये थे

“मेरी बहन मुझे माफ़ कर दें!”

कहते हुए अनिरुद्ध ने हाथ जोड़ लिया बहन के सामने राघव ने बढ़ कर अनिरुद्ध के हाथ थाम लिए.

“भैया! आप शांत हो जाइए आप की तबीयत ठीक नहीं मैं वादा करता हूँ मैं इसे हमेशा आप के पास लेकर आऊंगा! “

“हाँ भैया गलती मेरी भी तो थी मैं भी तो देखने नहीं आई कि मेरे भइया कैसे हैं भैया आप बस जल्दी ठीक हो जाइए। “

कहते हुए रीवा भैया के सीने से लगी तो उनके गोद में माँ और बाबू के एहसास पाकर मुस्कराने लगा जैसे माँ और बाबू जी कहीं गए ही नहीं भैया के अस्तित्व मे समाहित हो गए हैं।

अनिरुद्ध शांत हुआ तब तक मुग्धा आ गई… उनका सारा दर्प उनका घमंड सब कुछ गायब सा हो गया था लगा ही नहीं ये वही भाभी हैं जिनके बातों मे सिर्फ और सिर्फ़ घमंड ही झलकता! रीवा को देखते ही मुँह बनाने वाली भाभी ने आगे बढ़कर गले लगा लियापहली बार भाभी में माँ की छवी दिखाई दी थी।

“रीवा कितने दिनों बाद आई? मुझे माफ कर दो तुम भाई बहन के बीच दूरी का कारण मैं थी आज समझ आ रहा है जब उन लोगों ने साथ छोड़ दिया जिनके लिए मैं क्या क्या नहीं किया! रीवा! आज मुझे तुम्हारी जरूरत है तुम्हारे भैया बहुत बीमार हैं। “

कहते हुए मुग्धा बिलख पड़ी..

“भाभी! आप सारी चिंता छोड़ दीजिए अब मैं आ गई देखिएगा वो कैसे ठीक होते हैं आप नहीं जानती वो अकेले मुझसे ही डरते हैं मैं उनकी माँ से कम हूँ क्या!”

कहते हुए भैया के गले लग गई सभी खिलखिला पड़े बीमार अनिरुद्ध के आँखों मे चमक देख मुग्धा हैरान थी कितना कुछ करती थी लेकिन हमेशा उदास से रहनेवाले अनिरुद्ध की आंखे तक मुस्करा रही थीं। होता भी क्यों नहीं माँ के गर्भ का रिश्ता जो था लोग दुनिया मे आकर रिश्ता जोड़ते हैं भाई बहन तो माँ के गर्भ से रिश्ता जोड़ आते हैं।

दोस्तों मेरी नई कहानी उम्मीद है कि आप सभी को पसंद आएगी.. अच्छी लगे तो लाइक और कमेंट कर मुझे बताएं।

मौलिक रचना (सर्वाधिकार सुरक्षित) ©®


अर्चना के. शंकर (अर्चना पाण्डेय)

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