चोरी छुपे मुझे कुछ मत दिया करो

Sarika Rajkotia

सोनाली ,मेरी बहन! अभी  के लिए यह रख। वादा करता हूं भविष्य में परिस्थिति ठीक होने पर जो तू मांगेगी वही दूंगा ।”अनिल ने अपनी छोटी बहन को 1000 रुपये देते हुए कहाl।

कैसी बातें करते हो भैया। मेरे लिए आप सबका साथ व प्यार ही मायने रखता है। भैया बहना चाहती सिर्फ प्यार दुलार ,नहीं मागती बड़े उपहार। सोनाली ने भरे  गले के साथ कहा।

मैं ऑटो लेकर आता हूं ,तब तक देख लो कमरे में ,कोई सामान , छूटा तो नहीं” इतना बोल कर अनिल ऑटो लेने चला गया।

तभी सोनाली की मां उषा जी ने बहू सीमा से कहा “रास्ते के लिए खाने का सामान अच्छे से पैक कर दिया ना ?जाओ !कमरे में देखा आओ ,सोनाली का कोई सामान छूटा तो नहीं?

सोनाली अपने मायके आई हुई थी ।15 दिन  रुकने के बाद वापस ससुराल जाने का समय आ गया था। सोनाली के भाई अनिल की नौकरी जा चुकी थी ।वह 6 महीने से बेरोजगार था ।नौकरी की तलाश में दर-दर भटक रहा था। अब तक बचत से घर चल रहा था ।उस पर मां ,पत्नी, और दो बच्चों की जिम्मेदारी थी ।अनिल ने नौकरी जाने की बात अपनी बहन सोनाली से नहीं की थी ,उसे तो मायके में आकर इस बारे में पता चला।

तब सोनाली किसी ना किसी बहाने भाई के बच्चों को बाहर ले जाती और कपड़े, खिलौने ,स्कूल की  जरूरत का सामान दिला देती। यह उषा जी को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता।

जैसे ही बहू सीमा अंदर जाती है उषा जी ने पैसों से भरा लिफाफा सोनाली को दिया ।

यह क्या है मां? सोनाली ने आश्चर्य से पूछा।

₹11000 है ,रख ले काम आएंगे ।उषा जी ने कहा ।

“पर भैया ने तो अभी आपके सामने ही शगुन दिया और भाभी ने साड़ी ।फिर इसकी क्या जरूरत है? सोनाली ने आश्चर्य से कहा।

” पैसे तो मैं तुझे पहले भी देती थी।” उषा जी ने कहा

“पर मां !पहले की और आज की परिस्थिति में अंतर है।”सोनाली ने कहा

“अरे बहन -बेटियों को देने से कुछ कम नहीं हो जाता। तेरे पापा की पेंशन के पैसे हैं ,जो मुझे मिलते हैं ।रखे रखे एक के दो  तो नहीं हो जाने वाले। तेरी भाभी ने तो साधारण सी साड़ी और भाई ने हजार रुपए पकड़ा दिए ।ससुराल में क्या इज्जत रह जाएगी तेरी।

जितना भाई भाभी ने तुझे दिया उससे ज्यादा तो तूने यहां खर्चा कर दिया।

अभी मेरे पास पैसे हैं, रख ले ।ससुराल जाकर अपनी पसंद का कुछ खरीद लेना ।”उषा जी ने कहा

“सबसे पहले तो  यह चोरी छुपे मुझे कुछ मत दिया करो। भाई -भाभी के मन में संदेह उत्पन्न मत करो। इससे मन में  गांठे बन जाती हैं। मां !भैया का दिया हजार रुपय भी मेरे लिए सवा लाख के बराबर है ।उसमें भैया- भाभी का आशीर्वाद और प्यार छुपा है। मां !सामान से ज्यादा सम्मान प्यारा होता ,जो मुझे भाई भाभी से मिलता है। भाई -भाभी ही तो होते हैं जो माता-पिता के ना रहने पर बहन को मायके की कमी नहीं महसूस होने देते।

मां !आज के समय में जहां बच्चे मां बाप को बेसहारा कर देते हैं, वृद्ध आश्रम में जाने को मजबूर कर देते हैं, वहीं तुम्हारे बेटा -बहु तुमारा कितना सम्मान करते हैं। तुम्हारी हर जरूरत पूरी करने की कोशिश करते हैं। वह पलट कर उल्टा जवाब नहीं देते ।पोते -पोती दादी -दादी करते आगे पीछे घूमते हैं ।बहू एक आवाज में हाजिर हो जाती हैं ।और क्या चाहिए तुम्हें?

भैया- भाभी ने आपको किसी बात की कमी नहीं रखी। इतनी मुश्किल में होते हुए भी आपसे एक रुपए की मदद नहीं मांगी ।कभी आपसे आपके इलाज, दवाइयों ,तीर्थ यात्रा के लिए पैसे नहीं मांगे  ।भाभी तो मुझसे बड़ी बहन सा स्नेह रखती है। होटल में ना सही पर घर में मेरी पसंद के कितने पकवान बनाकर प्यार से खिलाए हैं।

बेटे बहू का हर फर्ज निभाया ,तो आपको नहीं लगता कि मुश्किल घड़ी में आपको भैया का सहारा बनना चाहिए।

मैं जो बच्चों के लिए लाती हूं वह हमारे बीच की बात  है।आप बेकार में परेशान मत हो।

मां !आपके इन पैसों पर भैया- भाभी का हक है। आपकी यह छोटी सी मदद डूबते को तिनके का सहारा हो सकती है। सोनाली ने मां को समझाया

“हां बेटा! शायद तू सही कह रही है। बेटी के  मोह में  बेटे बहू का प्यार -सम्मान दिखाई नहीं दिया। उषा जी ने कहा।

दरवाजे से सट कर बहू सीमा नम आंखों से यह दृश्य देख रही थी।

उषा जी ने ₹11000  बहू को देते हुए कहा “रख ले ,घर खर्चे में काम आएंगे।

घर के बाहर जेठ का सूरज अंगारे बरसा रहा था और घर के अंदर आंसुओं की बूंदें सभी के मन निर्मल कर रही थीं।

दोस्तों- जरूरी नहीं हर बेटा बहू बुरे हो। बुजुर्गों को भी तालमेल बिठाकर रहना चाहिए। सुख- दुख में मजबूत स्तंभ की तरह बच्चों के साथ  खडे रहें।

Scroll to Top