मेरी जायदाद पर पहले मेरा हक है

अर्चना खंडेलवाल

ट्रेन अपनी गति से चल रही थी समता ने अजय से पूछा तूने खाना खाया?

हां खाकर आया हूं।

मेरे हाथ के बनें परांठे और आलू की सब्जी खा ले।

समता ने जोर देकर कहा।

नहीं दीदी सच में भूख नहीं है नहीं तो जरूर खा लेता ये कहकर अजय मोबाइल में लग गया।

समता ने भी आधा-अधूरा खाना खाया और टिफिन पैक कर दिया।

वो कितने मन से अजय की पसंद के परांठे और आलू की सब्जी बनाकर लाई थी अजय कितने शौक से खाता था और अब सामने रखा है तो अजय सब भूल गया।

समता को बहुत दुःख हो रहा था पर वो चुपचाप रही चलती ट्रेन के साथ उसके मन की गति भी चल रही थी पुराने दिन याद आ रहें थे। अजय एक जाने-पहचाने अजनबी की तरह उसके साथ था।

वो सामने बात करना चाहती थी पर अजय मोबाइल में उलझा था इतनी रात को ऑफिस का काम तो नहीं था बस कबसे व्हाट्सएप फेसबुक और ट्विटर इंस्ट्राग्राम खंगाल रहा था।

ऐसा लग रहा था समता का साथ होना उसके लिए कोई मायने ही नहीं रखता था थोड़ी देर बाद अजय की पत्नी का फोन आया उससे उसने हंसकर बात की पर समता से वो बस बातचीत की औपचारिकता निभा रहा था।

बरसों बाद केवल दोनों भाई-बहन साथ में लंबा सफर कर रहे थे वहां घर में पिताजी बीमार थे जाने से पहले बच्चों से मिलना चाहते थे अजय और समता एक ही शहर में दूर-दूर सोसायटी में रहते हैं। साल में एक दो बार त्योहार के बहाने मिलना होता है।

अजय का स्टेटस काफी ऊंचा  है और पत्नी साक्षी भी नामी-गिरामी कंपनी में उच्च पद पर है दोनों की अपनी अलग दुनिया है दोनों के दो प्यारे से बच्चे हैं।

अजय ने लव मैरिज की थी साक्षी काफी अमीर घर से है उसे अजय से प्यार हो गया था। अजय के घरवालों ने पहले ही लड़की चुन रखी थी उससे शादी करने से अजय ने इंकार कर दिया। घरवालों के खिलाफ शादी कर ली समता उम्र में अजय से पांच साल बड़ी है उसने हमेशा अजय का ख्याल रखा था।

उसने भी अजय को समझाया कि साक्षी हमारे जैसी लड़की नहीं है वो अपने परिवार में निभ नहीं पायेगी पर अजय इस बात पर ही समता से झगड़ पड़ा।

मां जब बीमार थी अजय छुट्टियों में घूमने गया हुआ था समता ने फोन पर सूचना दी पीछे से साक्षी चिल्ला रही थी दीदी को अभी फोन करके हमारे घूमने का मजा खराब करना था ये सुनते ही समता ने फोन रख दिया।

कुछ दिनों बाद बेटे के इंतजार में मां चल बसी।

समता ने जरा सा बोल क्या दिया साक्षी झगड़ पड़ी और अजय भी साक्षी की तरफ ही था।

अब समता ने कुछ भी कहना और समझाना छोड़ दिया। खून के रिश्ते टूटते तो नहीं है मनमुटाव के बाद भी निभते रहते हैं।

कहने को एक ही शहर में रहते हैं पर मन में दूरियां आ गई है साक्षी ने अजय को पूरी तरह से अपने परिवार से दूर कर दिया उसके लिए परिवार की एकमात्र यही परिभाषा थी कि परिवार में बस हम दो और हमारे दो बच्चे उसके अलावा ना तो दादी दादा आते थे ना ही बुआ आती थी वो केवल अपने मायके वालों से ही बनाकर रखती थी।

समता का अजय  से मिलना मात्र औपचारिकता होती थी।

कितना दर्द होता है जब रिश्ते बदल जाते हैं एक साथ बचपन जीने वाले अजनबी हो जाते हैं बचपन में जिनसे झगड़ते हैं बड़े होकर उनसे मनमुटाव हो जाते हैं रास्ते अलग हो जाते हैं सबकी अपनी व्यक्तिगत जिंदगी हो जाती है। एक आंगन में पले-बढ़े  हैं उन लोगों के अलग-अलग आंगन हो जाते हैं एक डाल के पंछियों का जगह-जगह बसेरा हो जाता हैं।

अजय ने शादी के बाद कभी मां और पिताजी को संभाला नहीं अब मां की मृत्यु के बाद पिताजी  से कभी -कभी बस बात कर लिया करता था उनको संभालने कभी उनके शहर नहीं जाता था अभी पिताजी की हालत बहुत ही खराब है डॉक्टर ने जवाब दे दिया वो जाने से पहले तुझे सारी जायदाद सौंपना चाहते है समता ने पिताजी के कहने पर अजय को समझाया बहुत मुश्किल से अजय को घर चलने को राजी किया।

इस बार साक्षी ने आसानी से जाने दिया क्योंकि पिताजी की जायदाद  गांव की जमीन सब अजय को मिलने वाला था।

जब घर पहुंचे तो देखा घर के बाहर ढ़ोल-नगाड़े बज रहे थे पिताजी झूम रहे थे अजय की ये सब देखकर आंखें फट गई। वो अजय का हाथ थामकर झूमने लगे।

उसे अंदर ले जाकर बैठाया और बोले रामू काका एसी चला दे मेरा बेटा आया है धूप में इसे गर्मी लग रही होगी।

अजय चिल्ला पड़ा पिताजी ये सब क्या है? आपकी तो तबीयत खराब थी पर आप तो यहां झूम रहे हैं और ये इतना महंगा एसी क्यों लगवा लिया और ये ढ़ोल-नगाड़े का क्या तमाशा है।

पिताजी बोले ये ढोल-नगाड़े तेरे आने की ख़ुशी में बजवाये है ताकि सबको पता लग जाये कि मेरा नालायक बेटा आ चुका है अरे! तू मुझसे मिलने नहीं मेरी जायदाद लेने आया है और रही एसी की बात ये मैंने अपने पैसों से लिया है। मैं अपनी कमाई से कुछ भी कर सकता हूं।

आपने मुझे बुलाकर मेरा समय बर्बाद कर दिया अजय गुस्से से बोला।

पिताजी बोले मैंने तुझे इसलिए बुलाया ताकि तू देख सके कि मैं तेरे बिना भी खुश रह सकता हूं मैंने घर में नौकर रख लिये है और ये घर अब एक वृद्धाश्रम में बदल गया है ऊपर बोर्ड देख अजय ने ऊपर देखा सचमुच वो बड़ा सा घर मां के नाम पर एक वृद्धाश्रम में तब्दील हो गया है।

“शांति देवी वृद्धाश्रम” मां के नाम पर वृद्धाश्रम खोला है।

वो थोड़ा नरम हुआ और बोला पिताजी इसी घर के भरोसे मैंने शहर में इतना बड़ा बंगला ले लिया है लॉन पर इसे बेचकर मैं वो कर्ज चुका देता।

आपने अपने बेटे के बारे में सोचा तक नहीं और इतने बड़े घर को ट्रस्ट में दे दिया वृद्धाश्रम बना दिया।

तूने सोचा था अपनी मां के बारे में? उसकी आखिरी तड़प के बारे में कितना तड़पी थी तरसी थी तेरी एक झलक के लिए। तूने क्या फर्ज निभाये जो हक की बात कर रहा है मां -बाप तो हमेशा ही बच्चों की फ्रिक करते हैं क्या बच्चों का कोई फर्ज नहीं बनता है? मेरी शांति तो नहीं रही पर मैं तो जिंदा था कभी संभाला तेरा बाप अकेले कैसे रहता होगा? पिताजी के मुंह से ये सुनकर अजय चुप हो गया।

बेटा ये जायदाद मेरे खून-पसीने की कमाई की है इस जायदाद पर पहले मेरा हक हैमैं इसका कुछ भी करूं?

तुझे कुछ कहने का हक नहीं है मैंने अपनी पूरी जिम्मेदारी निभाई तुझे पाला पढ़ाया तेरी शादी की।

तूने तो अपना एक भी फर्ज नहीं निभाया।

अब मैं अपने मन की कर रहा हूं बहुत कर लिया बच्चों के लिए उनके भविष्य के लिए कभी अपने मन की कुछ पूरी नहीं की। क्या करूंगा  पैसे बचाकर

मैं भी अब अपने जीवन को सुख-शांति से जीऊंगा और हां जब मैं तेरी जिंदगी में कोई दख़ल नहीं देता तो तुझे भी दख्ल देने का हक नहीं है। मैंने कभी तुझे टोका कि तूने ये महंगी कार क्यों ली? इतना बड़ा बंगला क्यों लिया? जिसमें अपने बाप के लिए थोड़ी सी भी जगह नहीं है।

इस वृद्धाश्रम में रहकर मेरा भी अकेलापन दूर होगा और बाकी बिना बच्चों वाले और बच्चों वाले सभी वृद्धों को रहने की जगह मिलेंगी।

घर में काफी जगह है और खर्च भी निकल रहा हैतुझे बताना था कि मैंने अपने गांव की जमीन बेच दी है उस पर फेक्ट्री बनेगी मुझे  डेढ़ करोड़ रूपए मिले हैं।

उन रुपयों से ये वृद्धाश्रम चल रहा है।

तुझे फोन पर मुझसे बात करने की फुर्सत नहीं हैतो मैंने जायदाद के बहाने बुलाया वैसे तो तू मुझसे मिलने आता नहीं।  जब तेरे बच्चे तुझे घर में रखने से मना कर देंगे तो तू यहीं आ जाना। ये वृद्धाश्रम सदैव खुला रहेगा। तुझे यहां सहारा जरूर मिलेगा।

अब जा अपने रास्ते मुझे तेरे सहारे की जरूरत नहीं है मुझे अपने जीने का एक उद्देश्य मिल गया है।

पिताजी के मुंह से ये सब सुनकर अजय हैरान रह गया उसे अपने किये पर शर्म आ रही थी पर अब क्या हो सकता था वो अपना सा मुंह लेकर चला गया।

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