अर्चना के. शंकर
“मेरी माँ का क्या होगा आकाश.. पापा थे तब तक चिंता नहीं थी अब क्या होगा?” कहते हुए वर्तिका बिलख कर रो पड़ी दो दिन ही पहले पिता के ब्रह्मभोज और सब कुछ समेट लौटी थी वर्तिका माँ को अकेला छोड़ आने का बिल्कुल मन नहीं था वो माँ जो कभी दोनों बहनों की ताकत थी आज कैसी निरीह और कमजोर दिख रही थी! पापा के जाने के बाद जैसे सचमुच उनका आधा हिस्सा खत्म सा हो गया था वो मुस्कुराना तक भूल गई थी.. कभी दोनों बहने कुछ कहती तो जबरदस्ती मुस्करा देती लेकिन साथ मे आँखों मे आँसू भी आ जातें..।
वर्तिका अभी स्नेहा है ना माँ के पास तब तक मैं कुछ सोचता हूँ तुम पहले शांत हो जाओ।
वर्तिका को संभालते हुए आकाश बोला..”लेकिन आकाश स्नेहा के भी फाइनल एक्जाम आने वाला है वो भी अगले हफ्ते हास्टल चली जाएगी.. तब क्या होगा आकाश.?”
“तब क्या होगा हम उन्हें अपने पास ले आयेंगे तुम क्यों चिंता करती हो मैं हूँ ना वो मेरी भी माँ हैं।”
आकाश की बातें सुन वर्तिका शांत हो गई जैसे दिल मे उठते तूफान की लहरों को शकुन आ गया हो उसके होंठो पर मीठी मुस्कान की लकीर खिंच आई वो आकाश के सीने से लग गई।
“अरे बहू! नाश्ता मिलेगा आज कि नहीं.. क्या कहें आज कल के बच्चों को नाश्ता बनाकर कमरे मे चली गई कहो तो मैं खुद ही ले लूँ!”
“नहीं माँ बस आई सब कुछ तैयार है आप बैठिए तो।”
डायनिंग टेबल पर बैठते हुए प्रमिला जी की नज़र वर्तिका के चेहरे पर गई..
“बहू क्या बात है आँखे ऐसी सूजी सूजी सी क्यों है रो रही थी? क्या आकाश क्या तुमने कुछ कहा?”
सासू माँ की बातें सुन वर्तिका और टूट गई आँखों से निर्झर नीर बहने लगे प्रमिला जी ने उसका हाथ पकड़ डायनिंग टेबल पर बिठाया..
माँ वो अपनी माँ के लिए परेशान है अगले हफ्ते स्नेहा भी हास्टल चली जाएगी मैंने तो इससे कहा भी कि हम उन्हें अपने पास ले आयेंगे..
कहते हुए आकाश हिचकने लगा..
प्रमिला जी चुप हो गई एकदम शांत कुछ नहीं कहा आकाश और वर्तिका घबरा उठे क्या कुछ गलत कह दिया!!
प्रमिला जी नाश्ता कर चुपचाप कमरे में गई दरवाजा बंद कर लिया कुछ आधे घंटे बाद दरवाजा खुला तो वो तैयार खड़ी थी
“आकाश! गाड़ी निकालो और बहू तुम भी साथ चलो हम तुम्हारे माँ को साथ लेकर आयेंगे कहते हुए मुस्कराने लगी..”
ये सुनते ही आकाश ने जाकर माँ को गले लगा लिया और वर्तिका के आँखों से आँसू रुक ही नहीं रहे थे लेकिन होंठो पर इतनी मुस्कुराहट कि जैसे कोई बच्ची.. जल्दी जल्दी तैयार हुई सभी साथ निकले दो घंटे की यात्रा कर सभी वर्तिका के मायके पहुँचे।
बड़े से घर के आँगन मे माँ रमा जी चुपचाप बैठी थी जैसे जिंदा ही ना बिल्कुल पाषाण शीला सी शांत और स्थिर! ये वहीं आँगन है जो माँ के हर कदम को पहचानता था माँ के पायल की घुँघरू से पूरा गूँजता.. कभी घुँघरू गिर जाते तो वो सन्नाटा पापा को बिल्कुल नहीं भाता और वो तुरंत माँ के पायल मे ढ़ेर सारा घुँघरू लगवाते.. आज वही सन्नाटा पसरा था जिससे पापा घबराते..
जाते ही माँ के गले लग गई वर्तिका, रमा जी ने समधन को देखा जैसे इतने दिनों की तन्द्रा टूटी भाग भाग कर उनके आवभगत मे लग गई.. क्या बना दे! क्या खिला दे..! कहा बिठा ले! इसके लिए हैरान परेशान हो गई.. प्रमिला जी ने उनका हाथ थाम अपने पास बिठा लिया..
“अब आप यहाँ बैठिए ये आवभगत आप रोज़ कर लीजियेगा.. आप हमारे साथ मेरे घर जा रही हैं अपनी बेटी और बेटे के घर.. अपनी सहेली के घर।”
वर्तिका ने माँ को सब बताया वो लोग उन्हें लेने आयें हैं.. रमा जी घबरा उठी आँखों से आँसू बह निकले..
नहीं कैसे मैं दामाद के घर जाकर रहूँ! कैसे अपने समधी के घर रहूँ! लोग क्या कहेंगे! नहीं नहीं मैं यही रह लूँगी आप लोग परेशान ना हो
कहते हुए हाथ जोड़ खड़ी हो गई..
प्रमिला जी भी खड़ी हो गई..
“ठीक है तब मैं आपकी बेटी को आपके पास छोड़ जाती हूँ आपकी बेटी आपका ख्याल रखेगी और मेरा बेटा मेरा.. मैं वर्तिका को रोज़ रोते हुए नहीं देख सकती.. नहीं तो मैं ऐसा करती हूँ मैं ही रुक जाती हूँ यहाँ भई मुझे तो अपने समधी के घर रुकने में कोई शर्म नहीं।”
कहते हुए पलसथी मार बैठ गई जैसे धरने पर बैठना हो!
तभी आकाश आगे आया और रमा जी से बोल पड़ा.
” माँ! जब वर्तिका मेरी माँ का ख्याल रखती है बिल्कुल अपनी माँ की तरह उन दोनों को देख सभी कहते हैं कि वो माँ बेटी हैं.. तो क्या मैं आपका बेटा नहीं हूँ अगर ऐसा है तो मैं कभी आप से कुछ नहीं कहूँगा!”
रमा जी ने आगे बढ़कर आकाश के माथे पर हाथ रख बोल पड़ी
” नहीं बेटा आप तो मुझे वर्तिका से भी प्यारे हो, मेरे वज़ह से आप दुखी ना हो।”
प्रमिला जी फिर उछाल कर खड़ी हो गई.. और बच्चों जैसे चहकते हुए बोल पड़ी..
“रमा जी चलिए एक सौदा करते है आप हमारे साथ चलिए कुछ दिन वहाँ रहेंगे फिर हम दोनों जब ईन दोनों से ऊब जाएंगे इकट्ठे यहां आ जाएंगे यहां अकेले मस्ती मारेंगे फिर कुछ दिनों बाद आकाश और वर्तिका के पास.. ऐसे हम दोनों एक एक कर अपने समधियाने रह लेंगे क्या कहती हैं?”
रमा जी खिलखिला पड़ी वर्तिका ने पापा के जाने के बाद पहली बार माँ को हँसते हुए देखा था जाकर सासू माँ के गले लग गई प्रमिला जी ने उसका माथा चूम लिया पगली क्यों रो रही है मुझे भी तो मेरी सखी मिल गई जिसके सहारे हम दोनों अपना जीवन काट लेंगे और फ़िर तुम जैसे प्यारे बच्चे हैं हमारे पास।
रात के समय कितने दिनों बाद उस घर के आंगन ने भी अपनी खुशियाँ वापस पाई थी पता था कि कल से वो सुना हो जाएगा लेकिन इस उम्मीद में कि अब कुछ-कुछ दिनों में ऐसी खुशियों से उसका आँचल महकता रहेगा।