” मां ! घर की बहू को बीमार पड़ने पर कोई खाना भी नहीं पूछ सकता “..

Kirti Mehrotra

” भाभी ! ये तो आपका रोज का है साल में एक बार आने का मौका मिलता है तो यहां आकर आपके नखरे उठाओ । रोज ही कोई ना कोई बीमारी लेकर बैठ जाती हैं। मुझे कुछ नहीं पता मुझसे कोई काम की उम्मीद मत करिएगा कि मैं ससुराल में भी काम करूं और मायके आकर भी काम करूं ” जुही की ननद मानसी तमकते हुए सुनाकर चली गई ।

जुही तो सुनकर रह गई कि कोई इतना स्वार्थी कैसे हो सकता है कि मेरे तो पैर में प्लास्टर चढ़ा है और सबको अपने अपने कामों की पड़ी है । आज सुबह ही आंगन की सफाई करते हुए वो फिसल गई थी , हड्डी में माइनर सा बाल आ गया था तब भी पंद्रह दिन के लिए प्लास्टर चढ़ा गया था ।

तब तक सासूमां कलावती जी सर पर हाथ मारती हुई आ गई ” हाय रे मेरी फूटी किस्मत सोचा था कि बहू आ जाएगी तो सुकून से दो घड़ी बैठकर आराम करूंगी , बेटियां आएंगी तो उनसे बातें करूंगी । वो बेचारी कितने अरमानों के साथ मायके आई हैं कि भाभी कुछ सेवा करेंगी लेकिन यहां तो तुम उल्टे हम मां बेटियों से सेवा करवाने के लिए तैयार बैठी हो । मुझे तो लगता है ये सब तुम्हारी सोची समझी चाल है तुमने जानबूझकर चोट मार ली और प्लास्टर चढ़ाकर बैठ गई । तुम्हारा तो ये रोज का ही है ” बड़बड़ाते हुए वहां से चली गई ।

” ये हैं मेरे ससुराल वाले जिन्होंने एक बार भी मुझसे मेरा हालचाल पूछना जरूरी नहीं समझा किसी को भी नहीं लगा कि मुझे भी भूख लगी होगी कि कोई मुझे खाना ही दे देता । ये वही लोग हैं जिनकी मैं दिनभर एक टांग पर नाचते हुए सेवा करती हूं सबकी एक आवाज पर दौड़ती हूं और आज मेरे लिए कोई नहीं “

ननद जी बता रही हैं कि साल में एक बार आती हैं और मुझे तो लगता है मायका ससुराल एक ही जगह होने के कारण वो ससुराल में रूकती ही कितना है ,हर तीज त्योहार ,घर में किसी का बर्थडे ,एनीवर्सरी हो वो बिना बुलाए ही हाजिर रहती और यहां तक कि अपनी एनीवर्सरी और दोनों बच्चों के बर्थडे भी यहां आकर ही मनाती हैं । मेरी एनीवर्सरी और बच्चों के बर्थडे पर खाली हाथ चली आती हैं क्योंकि सासूमां का कहना है कि बेटियों से लिया नहीं जाता सिर्फ दिया ही जाता है । वापसी में पूरे परिवार का खाना पैक करवाकर ले जाती और गिफ्ट भी ले जाती लेकिन फिर भी शिकायतों का पुलिंदा तैयार ही रहता और मुंह फूला रहता कि भाभी ने तो कुछ किया ही नहीं कुछ दिया ही नहीं “

गर्मियों की छुट्टियों में तो पूरे एक महीने के लिए अटैची लेकर आ जाती । अपनी ननद आकर भी चली जाती लेकिन मेरी ननद जी वापस नहीं जाती क्योंकि ससुराल में काम करना पड़ेगा । जरा जरा देर में ननद जी को चाय बच्चों को ठंडा ,ताजा नाश्ता उसमें भी सुनाती रहती कि ” मुझसे ये तला भुना नहीं खाया जाता ” तो एक दिन भेलपूरी बना दी तो दोनों मां बेटी ने ये कहकर नाक में दम कर दिया ” मायके में कुछ देखा हो तो तब तो बनाना जाने वहां ल‌ईया ही खाई है तो वहीं बनाकर रख दी । खाने में रोज सुबह शाम वैरायटी चाहिए रहती अगर सुबह कुछ बच जाए तो मेरे हिस्से में और सबके लिए ताजा ताजा कुछ बनाओ । सुबह से रात हो जाती लेकिन दम मारने की फुर्सत नहीं मिलती लेकिन आज जब मुझे सहारे की जरूरत है तो सबने मुंह मोड़ लिया ऐसे जता दिया कि सबकुछ मैंने जानबूझ कर‌ किया है । सबको सबकी फरमाइशों पर दौड़ दौड़ कर खिलाने वाली आज खुद भूखी बैठी है और कोई उसे पूछने तक नहीं आया बल्कि सुनाकर चलते बनें । मुझे भूख लग रही है “

ये सब सोचते हुए जुही की आंखें छलछला आई और वो घिसटते हुए किचन तक जाने की कोशिश करने लगी क्योंकि उसे दर्द की दवाई खानी थी । तभी उसके पतिदेव रमन भी घर में घुसे और उसे इस तरह घिसटते देखकर आगे बढ़कर उसे सहारा देकर बैठाया और चिल्लाने लगे ” क्या घर में कोई है नहीं जो तुम इस हालत में भी किचन में जाने की कोशिश कर रही हो , मां हैं मानसी है उसकी बड़ी बड़ी बेटियां भी हैं उनसे कहकर करवा लेती ” ।

” आपकी मां और बहन‌ ने मुझे चार बातें ही सुनाई और किसी ने मेरा हालचाल पूछना तक ज़रूरी नहीं समझा । सबको खाना बनाकर खिलाने वाली को आज जरूरत पड़ने पर कोई खाना देने वाला भी नहीं है इस घर में ” कहते हुए जुही रोने लग गई ।

” तो ठीक है मैं कल ही तुम्हें मायके छोड़ आता हूं और अब से तुम भी किसी की सेवा नहीं करोगी । जो लोग ससुराल छोड़कर मायके में पड़े रहते हैं वो भी सुन लें कि जो मेरी जरूरत पर मेरे काम नहीं आए तो मैं भी उनकी आवभगत नहीं कर सकता । मां आप भी सुन लीजिए मैंने जुही के मायके फोन कर दिया है कल मैं उसे वहां छोड़ आऊंगा आप सब अपना अपना इंतजाम कर लीजिए । लोग इंसानियत के नाते बाहर वालों को खाने के‌ लिए पूछ लेते हैं आप घर की बहू क़ो खाना भी नहीं दे सकी मुझे आपसे तो ऐसी उम्मीद बिल्कुल नहीं थी ” इतना कहकर रमन जुही को लेकर कमरे की ओर चला गया लेकिन आज मां बहन के व्यवहार ने उसकी आंखें खोल दीं थीं ।

दोस्तों आपको मेरी ये स्वरचित और मौलिक रचना कैसी लगी कृपया पढ़कर अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया जरूर दें आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है । ये सिर्फ मेरे अपने विचार हैं मेरा मकसद किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना बिल्कुल नहीं है ।

जल्दी ही मिलती हूं आपसे अपने न‌ए ब्लाग के साथ तब तक के लिए राम राम 🙏

आपकी प्रतिक्रिया के इन्तजार में ..

आपकी दोस्त

कीर्ति मेहरोत्रा

धन्यवाद 🙏

” अब मैं अपने बर्तन कभी किसी को भी नहीं दूंगी”…..

” भाभी ! ” बीत ग‌ई सो बात गई ” पुरानी बातें भूलकर आगे बढिए “…

” गुलाबजामुन कुकर में कौन उबालता है महारानी साहिबा!

” भाभी ! आप खुद के साथ हमारी भी फेवरेट हो “…..

” माई ! आप आम खाओ कपड़े साफ करने की जिम्मेदारी हमारी “….

” बहू ! रहने दो झागदार कॉफी तुमसे ना बन पाएगी “…..

” मुझे नहीं पता था कि ईश्वर मेरी इतनी जल्दी सुन लेगा वरना कुछ और मांग लेती “….

# जेठानी जी ! ससुराल में भी कोई अपना होता है भला “….

” वो लंचबाक्स का खुलना और आम के अचार की खुशबू का पूरे क्लास में फ़ैल जाना आज भी याद है “….

” मीठी सौंफ और हाजमोला की लत ने सारी पोल पट्टी खोलकर रख दी “….

” भाभी ! मुझे तो लगा था कि मां के बाद आम के अचार के स्वाद और खुशबू के लिए तरस जाऊंगी “….

” जेठानी जी ! आपको अपने मन की बात बताकर बहुत बड़ी गलती कर दी “…

” बेटा ! हमेशा याद रखो कि हमारे कर्म ही हमारी पहचान होते हैं “….

” अम्मा ! आपको अपनी जिंदगी जीने का पूरा हक है “….

डिस्क्लेमर:  इस पोस्ट में व्यक्त की गई राय लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। जरूरी नहीं कि वे विचार या राय Momspresso.com के विचारों को प्रतिबिंबित करते हों .कोई भी चूक या त्रुटियां लेखक की हैं और मॉम्सप्रेस्सो की उसके लिए कोई दायित्व या जिम्मेदारी नहीं है ।

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