जाने कब बनोगी परफेक्ट…..

“बच्चों घड़ी का अलार्म बज गया। उठो वरना स्कूल के लिए लेट हो जाओगे। शिवांश(श्वेता के पति) आप भी उठो…” श्वेता रसोई से आवाज़ लगाती जाती और टिफिन तैयार करती जाती मगर चारों में से कोई भी ना उठके दे रहा। चारों मतलब श्वेता और शिवांश के तीन बच्चे हैं। तेरह साल का मयूर, दस साल का विवान और पाँच साल की लायशा। और चौथा बच्चा खुद शिवांश जिसे सिर्फ नौकरी करने और बच्चों संग खेलने से मतलब है। इसके अलावा शिवांश के माता पिता जो बूढ़े हैं साथ रहते हैं।

#मैं बेहतर जानती हूं ब्लॉगिंग चैलेंज मां ही बेटी का घर बसा सकती है

“अरे सोनल ये क्या तुम अचानक कैसे और ये बैग!” अपनी विवाहित बेटी को दरवाजे पर देख स्मृति जी ने पूछा।”मम्मी मैं वो घर छोड़ आई हूं…

अरे फिक्र किस बात की…बहू है ना सब संभाल लेगी..!!

अरे रोशनी,, तू क्यों फिक्र करती है… तेरी भाभी बड़ी गुणवान है, मेरी बहु सब संभाल लेगी. तू तो बस आ जा और कोई फिक्र मत करना डिलीवरी होने के बाद 6 महीने तक तुझे यही रहना है. शरीर बहुत कमजोर हो जाता है बेटा तेरा और बच्चे का हम अच्छे से ख्याल रख लेंगे…!!

किसे होना चाहिये शर्मसार

“वो देखो अमित की मम्मी को देखो, कितनी अजीब सी लगती हैं,”नील के ये कहते ही बच्चों के एक झुण्ड के साथ उनकी मॉर्डन ड्रेस पहने मम्मीयों की निगाहें अमित की मम्मी पर पड़ी, व्यंग की मुस्कान सबके चेहरे पर आ गई। बॉर्डर वाली साड़ी, तेल से चिपके बाल, माथे पर गोल बड़ी बिंदी, होठों पर बिना लिपस्टिक की,मुस्कान की परतें..पैरों में रंगहीन सैंडल।

अरे भाभी! ये साड़ी तो हमारी है…

“और भाभी! शादी के लिए कौन-कौन सी साड़ियां खरीद डालीं? चंचल ने शशि से मुस्कुराते हुए पूछा “नहीं जीजी! इस बार तो पुरानी साड़ियों से ही काम चलाऊंगीं, जबसे लॉकडाउन हुआ है मिंकू के पापा की स्तिथि कुछ खास संभल नहीं पाई, तो मैंनें ही मना कर दिया, नई साड़ियां लेने के लिए! शशि ने सहजता से जवाब दिया

तू ढीठ बन जा

शादी के बाद सबकुछ बहुत अच्छा था…. एक प्यार करने वाला पति और माता पिता जैसे सास ससुर और एक छोटी बहन जैसी ननद…. जैसा सुहानी ने सोचा था। बिल्कुल वैसा ही फिल्मी दुनिया वाला पति। लेकिन धीरे धीरे एक अलग ही रूप सामने आने लगा सबका.. जिसे सुहानी समझ कर भी नहीं समझ पा रही थी। मुंह पर तो सब कितने प्यार से बोलते थे सब। वो जो मांगती सब मिल जाता था उसे। लेकिन  उसे जो भी मिलता उसे एक अलग ही रूप देकर लोगों के सामने पेश किया जाता है इसका उसे अंदाजा ही नहीं था।पर आज जो हुआ उसके बाद वो सोचने पर मजबुर हो गई।

भाभी का भाई और सम्मान!!

“बहू! देखो आँगन मे तुम्हारा भाई खड़ा है। “बड़े रूखे से स्वर मे मालती जी ने बहु आराध्या से कहा जैसे जो आया है वो अनचाहा है सासू…

मायके की नहीं, ससुराल की परवरिश है ये

“अरे,जैसा अपने मायके से सीखकर आयी होती है ।वैसा ही तो ससुराल में करेंगी।”कहते हुए मिसेज शर्मा ने ,मिसेज गुप्ता को देखा। “सुरभि जरा समोसे और तलकर ले आना।”अपनी ठोडी को अकड़ वाले अंदाज में ऊपर करते हुए किचन की तरफ देखकर बोली।मिसेज शर्मा ने आज अपनी कुछ दोस्तों को चाय पर बुलाया था।अब सारी सासे साथ बैठी हो,बहुओं की बातों लिये मरोड़ ना उठे पेेट में ऐसे कैसे?

एक फैसला!!!

मैं अहिल्या यह सोच-सोच कर रोती रही कि कहां और कैसे मुझसे बच्चों की परवरिश करने में भूल हो गयी और रोते रोते कब मेरी आंख लग गयी थी पता ही नहीं चला था… सुबह उठी तो देखा सभी अपने कामों में ऐसे मगन थे कि जैसे कल रात कुछ हुआ ही नहीं था। दोनों बहुओं ने देख कर भी अनदेखा कर दिया और बेटे??? थोड़ी देर वही खड़ी रही कि शायद कोई बेटा कल रात के लिये माफी मांग ले और कहे,” मां कल जो कुछ भी कहा सब झूठ था। आप ने हमारे लिये कोई कमी नहीं रखी। आप सबसे बेस्ट मदर हो।” लेकिन… लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।

क्या बँटवारा हमेशा गलत ही होता है!

“रेखा सब्जी वाला आ गया?” “आई जीजी…।” “आपको नहीं लेनी।” “लेनी है ।तुम चलकर देखो।मैं तुम्हारे भैया को चाय पकड़ा कर आती हूँ।” भैया रुकियो।क्या-क्या लाया है?..परवल नहीं लाया। तुझे दीदी ने कहा था ना,कल परवल लाना? “याद है भाभीजी,लाया भी था।क्या करूँ ,सब बिक गए।पाव के करीब पड़े हैं आप ले-लो आपकी दीदी को कल ला दूँगा।”

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